क्योंकि ये मातृभूमि ….

©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
जो लोग उजाड़ने चलें है इस देश को,
अब तो उनके पीछे जाना तुम छोड़ दो।
आजादी के लिए हमने गंवाए है कितने साल,
वो इतिहास के पन्नें जरा नयनों में तुम समा दो।
ये चमक और उन्नति का शोर सबकुछ है छलावा,
उस पर भी जरा तुम अपनी निगाहों से गौर कीजिए।
लोकतंत्र होकर भी यहां नहीं है वो खुली आज़ादी,
उन लोगों की नीतियां भी ज़रा तुम जान लीजिए।
कर चलें वो वतन तुम्हारे हवाले लहू अपना बहाकर,
धरती के लिए मर मिट गए वो अपनी जान गंवाकर।
यहां ख़ून सबने बहाया है मातृभूमि के लिए एक होकर,
वो लहराता तिरंगा उन्हीं रंगों की यादें हमें दिलाता है।
ये हिंदोस्ता हमारा मिसाल है सारे जहां के लिए,
जहां पर हिंदू, मुस्लिम, सीख, ईसाई सभी धर्मों का बसेरा है।
ऊंच-नीच नहीं होता किसी भी इन्सानों का खून,
क्योंकि वही लाल रंग शौर्य का प्रतिक बनकर तिरंगे की शान बढ़ाता है।
जिसने दिया तोहफा आजादी का हमें और हमारी आनेवाली कौम के लिए,
उन्हें ही भूल जाएं हम, ये मानवता की फितरत नहीं है।
उस इतिहास को इतिहास ही बने रहने दो अब यहां पर,
क्योंकि अब गुलामी के पहले ही जलजला यहां विनाश का उठनेवाला है।
इसीलिए मिटा दो ऐसी नीतियों को जो चाहती है गुलामी का मंजर,
ये सिर्फ देश नहीं, है ये सभी जाति धर्मों का मंदिर जैसा पवित्र घर।
इसीलिए यहां “जिओ और जीने दो सभी को”खुशहाल बनकर,
क्योंकि ये मातृभूमि हम सबकी है, सिर्फ कुछ लोगों की जागीर नहीं है – – –
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