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सांध्य परिदर्शन ….

©पद्म मुख पंडा

परिचय- सेवानिवृत्त अधिकारी राज्य ग्रामीण बैंक, रायगढ़, छत्तीसगढ़


 

गृह का पृष्ठ भाग उपवन है,

तरु, लता, वनस्पति सघन है,

मेरी यह दिनचर्या में शामिल,

जीवन भर का, संचित धन है!

 

प्रातः पांच बजे उठकर जब,

इधर उधर नज़रें दौड़ाता,

मेरा गांव , वहां का जीवन,

सहसा याद मुझे अा जाता!

 

मेरे पिता माता को उर में,

सजा रखा है, ज्योति जगा कर,

विवशता में, दूरस्थ ग्राम के,

आश्रित हूं, कुटुम्ब को लाकर!

 

इक्कीस डेसी मील जमीन का,

क्रय कर, भवन निर्माण किया

घर को छोड ख़ाली धरती पर,

नीम सागौन पौध   गाड़ दिया

 

आज वे पौधे, बड़े बड़े हैं,

जमीन पर, तनकर खड़े हैं!

कितनी आंधियों, बरसात से,

योद्धा बनकर वे लड़े हैं!

 

कोयल कूक रही पेड़ों पर,

उछल रहे हैं, उस पर बन्दर!

फुदक रही हैं, कई गिलहरी,

बहुत जोश है, उनके अन्दर!

 

रंग बिरंगी तितलियां भी,

उड़ती है, फूलों से सटकर,

दादुर यूं छलांग फांदते,

सब खेलों से, लगते हटकर!

 

अब झींगुर तान दे रहे,

बरस रहा जैसे संगीत!

गौरैया भी सुना रही हैं,

अपने प्रेमी को, ज्यों गीत!

 

मेरा मन है, मुग्ध, देखकर,

हरी भरी क्यारी पर ऐसे,

मेरे जीवन में, बचपन ज्यों,

लौट आया है, फिर से जैसे!

 

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