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मोची…

Rajesh Kumar Buddh,
राजेश कुमार बौद्ध

©राजेश कुमार बौद्ध

परिचय-   संपादक, प्रबुद्ध वैलफेयर सोसाइटी ऑफ उत्तर प्रदेश.


 

अगर न होता मोची

तो तेरी शान शौकत

न होती ?

फटे पुराने तेरे

जूतों की मरम्मत न होती।

तेरे शान शौकत को बढ़ाता है मोची,

फिर भी तू

मोची से उलझ जाता है।

उसकी औकात देखता है तू

पहले अपनी औकात

देख ले तू ।

फिर मोची की औकात देखना

चाहे कड़क गर्मी हो,

या बरसात

हाड़ कपकपा देने वाली ठन्ड

में कड़ी मेहनत कर के

अपने परिवार का

खर्च चलाता है मोची।

दूसरों की इज्जत बनाता

और बदले में मिलतीं हैं

तिरस्कार और गाली

फिर भी

जी जान से

लग जाता है मोची

हिम्मत नहीं हारता है मोची।

कहीं जगह नहीं मिलती

फिर भी

गंदे नाले या नाली के किनारे

नंगे तार और ट्रान्सफार्मर के नीचे

दुकान लगता है मोची

कहीं पुलिस की गाली

तो कहीं दबंग गुंडों की

मुक्त में बूट पालिसी

से तंग आ चुका है मोची

कोई नहीं सुनता,

उसकी फरियाद

एकदम उदास हो कर

बैठ जाता है मोची।………

 

 

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