कब तक रो लेते हम….
©प्रा.गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र्र
ठोकरें मिली इतनी की,हमें आदत सी हो गई,
टूटते ख्वाबों के संग संग तकदीर भी ख़फ़ा हो गई।
कब तक रो लेते हम,टूटते हुए सभी ख्वाबों को देखकर,
रूठा था बहारों का मौसम भी,रूका हुआ पतझड़ देखकर।

जब रूठ गई तकदीर तो,जिंदगी भी तसबीर बन गई,
युंही चलते-चलते वो आशाएं भी टूटकर बिखर गई।
शायद कभी मिली खुशियां तो,कुछ अजीब-सी लगती है,
कर ली गमों से दोस्ती हमने तो,खुशियां भी मायूस लगती है।
हमें हराते हराते वो मुसीबतें भी हमसे हार गई,
हंसते रहे हम और वो तकदीर भी रूख़ अपना बदल गई।
ठोकरें मिली इतनी की,हमें आदत सी हो गई,
फिर भी न रूकी ये जिंदगी और जीत हमारी हो गई।
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