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बिजली चोर है; कोई हत्यारा नहीं… 18 साल की सजा काट रहे इकराम को सुप्रीम कोर्ट से राहत; CJI का केंद्र सरकार को संदेश | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

नई दिल्ली | [कोर्ट बुलेटिन] | जेल में बंद यूपी के इस शख्स की पहचान इकराम के रूप में हुई है। इकराम को अब जेल से छोड़ा जा सकता है क्योंकि वह पहले ही तीन साल की सजा काट चुका है। एक ट्रायल कोर्ट ने इकराम को लगातार 9 बार (प्रत्येक दो-दो साल) जेल की सजा सुनाई थी। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “अगर हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में कार्रवाई नहीं करते हैं और कोई राहत देते हैं तो हम यहां कर क्या रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट क्या कर रहा है? क्या यह अनुच्छेद 136 के तहत उल्लंघन नहीं है। ऐसे याचिकाकर्ताओं की पुकार सुनने के लिए सुप्रीम कोर्ट मौजूद है। हम ऐसे मामलों के लिए पूरी रात मेहनत करते हैं और देखते हैं कि इसमें और भी बहुत कुछ है।”

 

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के एक शख्स को बिजली चोरी के आरोप में दी गई 18 साल की जेल की सजा को घटाकर दो साल कर दिया। लेकिन इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा कि अगर उस शख्स की सजा को कम नहीं किया गया तो “नागरिक की स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी”। इसने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय को पहले ही “न्याय की गंभीरता” पर ध्यान देना चाहिए था।

 

यूपी सरकार के वकील ने इकराम की सजा को कम करने का विरोध किया। इकराम ने कोर्ट से अनुरोध किया था कि उसी सभी 9 सजाओं को एक साथ चलने दिया जाए। हालांकि जब यूपी सरकार ने इसका विरोध किया तो मुख्य न्यायाधीश ने कहा: “आप एक बिजली चोरी के मामले की बराबरी हत्या से नहीं कर सकते।” उन्होंने आगे कहा, “सुप्रीम कोर्ट ऐसे याचिकाकर्ताओं की पुकार सुनने के लिए मौजूद है। हमारे लिए कोई भी मामला छोटा या बड़ा नहीं होता है। हमें हर दूसरे दिन ऐसे मामले मिलते हैं। क्या हम बिजली चोरी करने के लिए किसी को 18 साल के लिए जेल भेजेंगे?”

 

उच्च न्यायालय से भी नहीं मिली थी राहत

 

इकराम ने इससे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन उच्च न्यायालय भी इस बात से सहमत नहीं था कि व्यक्ति की सजा को एक साथ चलाया जाए। अगर ऐसा किया जाता तो व्यक्ति की पूरी सजा दो साल में ही खत्म हो जाती। इकराम 2019 में गिरफ्तारी के बाद से जेल में है। उसे 2020 में दोषी ठहराया गया था, जब ट्रायल कोर्ट ने नौ एफआईआर के लिए अलग-अलग मुकदमें चलाए थे। बाद में इकराम को एक ही दिन में सभी मामलों में दोषी ठहराया गया था।

 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “स्थिति पर गौर किया जाए तो [उसे] कुल 18 साल की कैद की सजा काटनी होगी।” जबकि जिस कानून (विद्युत अधिनियम की धारा 136) के तहत उसे दोषी ठहराया गया था – उसमें अधिकतम पांच साल की सजा है।

 

CJI का केंद्र सरकार को सीधा संदेश

 

इकराम के मामले में सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणियों से दो दिन पहले केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कई बड़े बयान दिए थे। रीजीजू कहा था कि उच्चतम न्यायालय अगर सभी जमानत अर्जियों और “तुच्छ जनहित याचिकाओं” को स्वीकार करता है तो इससे बहुत अधिक अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। रीजीजू ने बुधवार को राज्यसभा में नयी दिल्ली अंतरराष्ट्रीय माध्यस्थतम केंद्र संशोधन विधेयक, 2022 पेश करने के बाद यह टिप्पणी की थी।

 

उन्होंने कहा, “अगर भारत का सर्वोच्च न्यायालय जमानत आवेदनों पर सुनवाई शुरू करता है, अगर भारत का सर्वोच्च न्यायालय सभी तुच्छ जनहित याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करता है, तो यह निस्संदेह माननीय न्यायालय पर एक महत्वपूर्ण बोझ डालेगा, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय को आमतौर पर एक संवैधानिक अदालत माना जाता है।” उच्च सदन में रिजिजू ने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय को उन मामलों को उठाना चाहिए जो इसके लिए प्रासंगिक और उपयुक्त हों।

 

रिजिजू की टिप्पणी पर हमलावर हुआ विपक्ष

 

विपक्ष के नेताओं ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि सरकार न्यायपालिका को सूक्ष्म प्रबंधन करने की कोशिश कर रही है। वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्य सभा सदस्य कपिल सिब्बल ने कहा, “रीजीजू ने कथित तौर पर कहा: उच्चतम न्यायालय को जमानत याचिकाओं को नहीं लेना चाहिए…क्या उन्हें स्वतंत्रता का मतलब भी पता है?” लोकसभा सदस्य मनीष तिवारी ने मंत्री से पूछा कि क्या उन्होंने संधियां पढ़ी हैं- जमानत, न कि जेल नियम है।

 

कांग्रेस नेता ने ट्विटर पर कहा, “जाहिर तौर पर कानून मंत्री किरेन रीजीजू की विधि विद्यालय में कानून के इतर अन्य पूर्व व्यस्तताएं थीं। उन्होंने शायद जस्टिस कृष्णा अय्यर के मौलिक ग्रंथ – जमानत नियम है जेल नहीं, को कभी नहीं पढ़ा है। वरना कोई कानून मंत्री कैसे कह सकता है कि न्यायालय को जमानत याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए।”

 

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