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इतिहास के पन्नों से… ब्रेल लिपि के जनक लुइस ब्रेल जन्मदिन 4 जनवरी पर विशेष | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

डेस्क बुलेटिन | From the pages of history… Father of Braille script Louis Braille birthday special on January 4: लुइस ब्रेल का जन्म फ्रांस के छोटे से ग्राम कुप्रे में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। चार भाई-बहन में लुइस सबसे छोटे थे. इनके पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोडों के लिये काठी और जीन बनाने का कार्य किया करते थें। पारिवारिक आवश्यकताओं के अनुरूप पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं होने के कारण साइमन को अतिरिक्त मेहनत करनी होती थी इसीलिये जब बालक लुइस मात्र तीन वर्ष के हुये तो उनके पिता ने उसे भी अपने साथ कार्य में लगा लिया। अपने स्वभाव के अनुरूप तीन वर्षीय बालक अपने आस पास उपलब्ध वस्तुओं से खेलने में अपना समय बिताया करता था। बालक लुइस के खेलने की वस्तुये वही थीं जो उसके पिता द्वारा अपने कार्य में उपयोग की जाती थीं जैसे कठोर लकड़ी, रस्सी, लोहे के टुकडे, घोड़े की नाल, चाकू और काम आने वाले लोहे के औजार।

 

एक दिन काठी के लिये लकड़ी को काटते में इस्तेमाल किया जाने वाली चाकू अचानक उछल कर इस नन्हें बालक की आंख में जा लगा और बालक की आँख से खून की धारा बह निकली। साधारण जडी लगाकर उसकी आँख पर पट्टी कर दी गयी। धीरे धीरे वह नन्हा बालक आठ वर्ष का पूरा होने तक पूरी तरह दृष्टिहीन हो गया। रंग बिरंगे संसार के स्थान पर उस बालक के लिये सब कुछ गहन अंधकार में डूब गया।

 

बालक लुई बहुत जल्द ही अपनी स्थिति में रम गए। बचपन से ही लुई ब्रेल में गजब की क्षमता थी। हर बात को सीखने के प्रति उनकी जिज्ञासा को देखते हुए, चर्च के पादरी ने लुई ब्रेल का दाखिला पेरिस के अंधविद्यालय में करवा दिया। कहते हैं प्रकृति ने सभी को इस धरती पर किसी न किसी प्रयोजन हेतु भेजा है। लुई ब्रेल की जिन्दगी से तो यही सत्य उजागर होता है कि उनके बचपन के एक्सीडेंट के पीछे प्रकृति का खास मकसद छुपा हुआ था। 1825 में लुइस ने मात्र 16 वर्ष की उम्र में ब्रेल लिपि का आविष्कार कर दिया। इस लिपि ने दृष्टिबाधित लोगों की शिक्षा में क्रांति ला दी।

 

उम्र के दसवें वर्ष में उनके पिता ने उन्हें पेरिस के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्डे्रन में भर्ती करवा दिया। जहाँ “वेलन्टीन होउ” द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी, पर यह लिपि अधूरी थी। लुइस ने यहाँ इतिहास, भूगोल और गणित में प्रवीणता प्राप्त की। इसी स्कूल में एक बार फ्रांस की सेना के एक अधिकारी कैप्टन चार्ल्स बार्बियर एक प्रशिक्षण के सिलसिले में आए और उन्होंने सैनिकों द्वारा अँधेरे में पढ़ी जाने वाली “नाइट राइटिंग” या “सोनोग्राफी” लिपि के बारे में बताया। यह लिपि कागज पर अक्षरों को उभारकर बनाई जाती थी। इसमें 12 बिंदुओं को 6-6 की दो पंक्तियों को रखा जाता था। इसमें विराम चिह्न, संख्‍या, गणितीय चिह्न आदि का अभाव था। लुइस ने इसी लिपि के आधार पर 12 की बजाय 6 बिन्दुओ का उपयोग कर 64 अक्षर और चिह्न बनाये। इसमें उन्होंने विराम चिह्न और यहा तक की संगीत के नोटेशन लिखने के लिए भी जरुरी चिह्नो का भी समावेश किया।

 

यही लिपि आज सर्वमान्य है और दुनिया के लगभग सभी देशों में उपयोग में लाई जाती है। इसके बाद किशोरावस्था से युवावस्था तक लुइस को आगे बढ़ने में काफी मुश्किलो का सामना करना पड़ रहा था, इसके चलते उनके माता-पिता उनका काफी ध्यान भी रखते थे. किसी लकड़ी की सहायता से वे अपने गांव के रास्तो को ढुंढने की कोशिश करते थे और इसी तरह वे बड़े होते गये. ब्रेल का दिमाग काफी गतिशील था उन्होंने अपने विचारो से स्थानिय शिक्षकों और नागरिकों को आकर्षित कर रखा था। ब्रेल उच्चतम शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे. 1851 में टी.बी. की बीमारी से उनकी तबियत बिगड़ने लगी। 6 जनवरी 1852 को मात्र 43 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के 16 वर्ष बाद 1868 में ‘रॉयल इंस्टिट्‍यूट फॉर ब्लाइंड यूथ’ ने इस लिपि को मान्यता दी।

 

ब्रेल अपनी दृष्टिहीनता की वजह से अन्धो के लिए एक ऐसे सिस्टम का निर्माण करना चाहते थे जिससे उन्हें लिखने और पढ़ने में आसानी हो और आसानी से एक-दूजे से बात कर सके.

 

“बातचीत करना मतलब एक-दूजे के ज्ञान हो समझना जो   दृष्टिहीन लोगो के लिये ये बहुत महत्वपूर्ण है। इस बात को हम नजर अंदाज़ नही कर सकते. उनके अनुसार विश्व में अन्धो को भी उतना ही महत्त्व दिया जाना चाहिए जितना साधारण लोगों को दिया जाता है.”

 

लेकिन जीते जी उनके इस अविष्कार का महत्त्व लोगों को पता नहीं चला जबकि उनकी मृत्यु के बाद केवल पेरिस ही नही बल्कि पुरे विश्व के लिये उनका अविष्कार सहायक साबित हुआ. भारत सरकार ने 2009 में लुइस ब्रेल के सम्मान में डाक टिकिट जारी किया। लूइस द्वारा किये गये कार्य अकेले किसी राष्ट्र के लिये न होकर सम्पूर्ण विश्व की दृष्ठिहीन मानव जाति के लिये उपयोगी है।

 

रोचक तथ्य….

 

आंखों की रोशनी चली जाने के बाद भी लुइस ने हिम्मत नहीं हारी। वे ऐसी चीज बनाना चाहते थे, जो उनके जैसे दृष्टिहीन लोगों की मदद कर सके। इसीलिए उन्होंने अपने नाम से एक राइटिंग स्टाइल बनाई, जिसमें सिक्स डॉट कोड्स थे. वही स्क्रिप्ट आगे चलकर ‘ब्रेल लिपि’ के नाम से जानी गई. इसे बनाने में लुइस को आठ वर्ष का समय लगा।

 

ब्रेल लिपि के तहत 6 बिंदुओं को जोड़कर अक्षर, अंक, चिह्न और शब्‍द बनाए जाते हैं. इस लिपि में पहली किताब 1829 में प्रकाशित हुई.

 

लुइस को संगीत में काफी दिलचस्‍पी थी और वह कई तरह के यंत्र बजा लेते थे.

 

हम भी ऐसे महान व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर निशक्त और वंचित लोगों के जीवन में खुशियां लाने का प्रयास करें।

 

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