बेटी बड़ी मत हो जाना…
©गायकवाड विलास
बेटी बड़ी मत हो जाना तुम इस संसार में,
बड़ा ही जालिम है ये बदला हुआ ज़माना।
कदम-कदम पर है यहां जाल बिछाया हुआ,
इसीलिए जो भी तुम देखोगी उसे सच मत समझना।
अच्छे इन्सानों की बहोत कमी है यहां पर,
तुम्हीं को ढूंढ रही है यहां पर हर किसी की नज़र।
कांटों भरी राहों पर ना जाने कैसे चलोगी तुम,
इस ज़माने के उसी जालसाजी से तुम हो बेखबर।
हर कोई चेहरा यहां नक़ाब के पीछे छुपा है,
कलियों का खिलना भी यहां बहोत मुश्किल हो गया है।
कई कलियां खिलने से पहले ही मुरझाती है इस ज़माने में,
इसीलिए जी मेरा,तुम्हें देखकर ही पल-पल घबराता है ।
मां बाप के आंगन की हंसती खिलखिलाती हुई कली तुम,
हर वक्त ममता भरी निगाहों में पली तुम ।
अरमान तेरे कौन जाने मां बाप के सिवा इस दुनिया में,
ऐसी ममता भरी छांव कहीं ना मिलेगी तुम्हें इस संसार में।
ये सारा आसमां खुला है उड़ते पंछियों के लिए,
और यहां डाल डाल पर सभी पंछियों का बसेरा है।
पशु और जानवरों से यहां नहीं है कोई भी ख़तरा,
मगर इन्सानों के वही चेहरें कभी भी समझ नहीं आते है।
बेटी बड़ी मत हो जाना तुम इस संसार में,
कैसे अरमान तेरे पूरे होंगे इस मतलबी जमाने में।
पल-पल यहां खतरों की आहट है तेरे राहों पर,
ऐसे में कैसी मुस्कुराती रहोगी तुम यहां जिंदगी भर – – अपनी सारी उमर।
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