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मिट्टी के एहसान | Newsforum

©अविनाश पाटले, मुंगेली, छत्तीसगढ़


 

 

सिंहासन ऐसे नहीं मिलता

मिट्टी से ही हर फूल खिलता

ऊंचाई तक पहुंचाने में

किसी का हाथ होता है

अपनों का तो साथ होता है

पर भूल जाते हैं अपनों को अपने

दिखाते रहते हमेशा कई सपने

कब तक सपने में जीते रहेंगे

दर्द के आंसू हम पीते रहेंगे

बीतती चली जा रही है घड़ी

उम्र भी ढल रही तू है चुप खड़ी

हमें भी तो कुछ करना है

तेरे पीछे कब तक रहना है

आगे भी तो है निकलना

तुम्हारे होते हुये कैसे फिसलना

अब तो कुछ करो

जीवन में रोशनी भरो

हम किये सहारे

तुम नहीं हारे

इसलिए हम तुम्हें पुकारे

हमारे अल्फ़ाज करें स्वीकारे

दूर नहीं तू पास है

यहीं तो अपनो से विश्वास है

तुमसे कुछ आस है

मन में उठे कास है

कभी नहीं होती है मिट्टी विनाश

ये रहता है सदैव अविनाश

ये फूल तू ।

मिट्टी की अहसान न भूल

मुझमें ही तू फला फुला

क्यों फिर मुझे तू भुला

नहीं रह सकते तू मेरे बगैर

कैसे समझते हो मुझे तुम गैर

मिट्टी में भी सब रहता खेलता

उसी मिट्टी में फिर से सब मिलता

सिंहासन ऐसे ही नहीं मिलता

मिट्टी से ही हर फूल खिलता ….


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