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अपन …

©राजेश कुमार मधुकर (शिक्षक), कोरबा, छत्तीसगढ़

 


 

 

 

दुख म जेकर सुरता, सबले पहली आथे

जेकर नई रहे से, घर काट-काट खाथे

 

अइसे हितवा मन अपन होथे

 

चिटको खरोच हर, जब जब वोला लागथे

खरोच वोला लगे हे, पर पीरा तोला लगथे

 

अइसे हितवा मन अपन होथे

 

जेकर आशीर्बाद हर, दवाई बरोबर लगथे

जेकर मया ल पाके, अकास घलो ल छूथे

 

अइसे हितवा मन अपन होथे

 

अपन पीरा तोला, कभू नई बताथे

दुखी कतको रहय, सुखी हन जताथे

 

अइसे हितवा मन अपन होथे

 

 

होथे का जिनगी हर, हमला सदा बताथे

अपन अंतस खोलके, मया दुलार जताथे

 

अइसे हितवा मन अपन होथे

 

घर जेकर आये से, हली-भली हो जाथे

जुग जुग ले रहय, मधुकर सबला कहिथे

 

अइसे हितवा मन अपन होथे …

 


 

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