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गरीब होने के कारण कितने सवर्ण बेइज्जत होते हैं? | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©राजेश कुमार बौद्ध

परिचय-   गोरखपुर, उत्तर प्रदेश


 

क्या आपने कभी किसी सवर्ण; ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया की बेटी की बारात “गरीब होने के कारण” चढ़ने से रोकने की घटना सुनी है? क्या किसी सवर्ण दूल्हे को “गरीब होने के कारण” घोड़ी से उतारकर पीटने की घटना सुनी है? क्या “गरीब होने के कारण” ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया को मंदिर जाने से रोका गया ? क्या कोई सवर्ण “गरीब होने के कारण” स्कूल-कॉलेज में छुआछूत का शिकार हुआ ? क्या किसी सवर्ण शिक्षक को “गरीब होने के कारण” स्कूल- कॉलेज में नियुक्ति प्रदान करने से रोका गया ? क्या किसी सवर्ण को सार्वजनिक कुंए से “गरीब होने के कारण” पानी पीने से रोका गया ? क्या किसी सवर्ण ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया को “गरीब होने के कारण” शमशान में शव फूंकने से रोका गया ? क्या किसी सवर्ण सरपंच-प्रधान को “गरीब होने के कारण” राष्ट्रीय पर्व पर तिरंगा फहराने से रोका गया ? क्या किसी सवर्ण मजदूर को “गरीब होने के कारण” मजदूरी के पैसे मांगने पर मौत के घाट उतारा गया ? क्या किसी सवर्ण को “गरीब होने के कारण” सामूहिक भोज में दावत खाने से रोका गया ? क्या किसी सवर्ण महिला को “गरीब होने के कारण” नंगा करके गाँव में घुमाया गया ? क्या किसी सवर्ण लड़के को “गरीब होने के कारण” दलित लड़की से प्रेम करने पर मार डाला और सवर्णों की बस्तियां फूंकी गयी ? इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक सवर्ण जज ने दलित जज के जाने के बाद कुर्सी को गंगाजल से धोया था, यह गरीबी के कारण नहीं बल्कि जातीय घृणा के कारण ही हुआ था।

 

आप एक उदाहरण बता दें कि फलां ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया का केवल “गरीब होने के कारण” दलित की तरह उत्पीड़न किया गया हो। दलित की तरह रौंदा गया हो और घिनौने तरीके से जलील किया गया हो। टट्टी-पेशाब खिलाया-पिलाया गया हो और गोबर खिलाया गया हो। महिलाओं के यौनांगों में डण्डे खलखलाये हों और सैकड़ों लोगों ने सामूहिक बलात्कार किये हों।

 

अगर आप भारतीय समाज के चरित्र से अच्छी तरह परिचित होंगे, तो आपको मालूम होगा कि कोई ऐसा गरीब ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया नहीं मिलेगा, जिसको केवल जाति के आधार पर बेइज्जत होना पड़ा हो, जबकि दलित के लिए आमबात है।

 

यह सचाई है कि दलित “गरीब होने के कारण” बेइज्जत नहीं किया जाता है, बल्कि केवल नीची जाति के कारण बेइज्जत किया जाता है। क्या कोई सवर्ण से गरीब होने के कारण घृणा करता है ? नहीं न, बल्कि दलित को इस मामले में कोई रियायत नहीं है, चाहे वह मुख्यमंत्री रहते बहिन मायावती ही हों या एक आम दलित, घृणा का कारण बनना पड़ता है। महेन्द्र टिकैत ने मुख्यमंत्री रहते चमरिया कहा था।

 

मेरा दृढ़ मत है कि दलितों के विरुद्ध घृणा का कारण गरीबी नहीं, बल्कि नीची जाति है, चूँकि घृणा के चलते दलितों को जिस तरह समाज की वर्ण व्यवस्था से भी बाहर निकाल फेंका था, अछूत बना दिया था, उसी तरह राजनैतिक और प्रशासनिक व्यवस्था से बाहर निकालने का षड़यंत्र जारी है, इसलिए दलितों के संवैधानिक रूप से हिस्सा अर्थात् प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण आवश्यक है।

 

अगर आपके पास कोई ईमानदार विकल्प हो तो बताएं, ताकि सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था में दलितों की पर्याप्त भागीदारी, ईमानदारी से सुनिश्चित की जा सके। अन्यथा गरीबी अर्थात् आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात को अपने पास ही रखें। यह साम्यपूर्ण नहीं है, बल्कि एक मनुवादी झांसा है।


नोट :- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ‘ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन’ इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.


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