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सिर्फ चीते भेजने में ही नहीं; क्रिकेट में भी नामीबिया अव्वल | ऑनलाइन बुलेटिन

किंवदितियां सुनी थी कि नन्कऊ ने बड़के को शिकस्त दी। पुराण में भी जिक्र है महाबली सम्राट बली का जिन्हें वामन (विष्णु के पंचम अवतार) ने हराया था। एकदा हाथी की सूंड में घुसकर मच्छर ने उसे पछाड़ा था, भले ही वापसी पर मकड़ी के जाल में फंस कर वह निवाला बना।

 

कुछ ऐसा ही नजारा कल (16 अक्टूबर 2022) को जीलांग में उभरी था, जब एशियाई कप के विजेता श्रीलंका को नामीबिया ने हरा दिया। लखनवी लोग समझे बटेर लग गयी नेत्रहीन के हाथ। इस दक्षिणपूर्वी आस्ट्रेलियाई बन्दरगाह शहर जीलांग के भव्य कारडोनिया स्टेडियम में वहां छोटे ने बड़े को छप्पन रनों से ठोक डाला। कोलंबो के सूरमा दंग हो गये, रंज में।

 

नामीबिया जो दक्षिण—पश्चिमी अफ्रीकी गणराज्य है और ”बाज” के नाम से ख्यात है ने विश्वकप में हंगामा बरपा है। भारत पर भी यह विजय असर डाल सकती है। यही राष्ट्र नामीबिया​ था जहां से गत माह (17 सितम्बर 2007) को नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर चीते मंगवाकर कुनो वन (मध्य प्रदेश) में रखे हैं। अर्थात अब नामीबियाई चीते ने श्रीलंकाई हाथी को क्रिकेट मैदान में पस्त कर दिया। यूं भी नामीबिया खेल जगत में ”मिनोवा” कहलाता हैं, अर्थात बौना, ठिगना।

 

दुबाई में (11 सितम्बर 2022) पड़ोसी भारत और पाकिस्तान को हरानेवाला श्रीलंका लंबू था, ?लघु नहीं। इसी चमत्कार पर क्रिकेट के पहलवान भारत रत्न पचास—वर्षीय सचिन तेंदुलकर ने हैरानी व्यक्त कर ट्वीट किया कि : ”नामीबिया ने सारे संसार को बता दिया कि उसका ”नाम पता याद रखना।” मुम्बई के अदम्य बल्लेबाज वसीम जाफर ने भी नामीबिया की विजय को करिश्माई कहा।

 

पाकिस्तान के सात फुटे बायें बाजूवाले बालर मोहम्मद इरफान ने भी इस अफ्रीकी खिलाड़ी की तारीफ की। नामीबिया के ही बैट्समैन क्रेग जॉर्ज विलियम का दावा है कि कल की जीत तो बस इब्तिदा है। ”आगे और देखिये क्या गुल खिलते हैं।”

 

कप्तान गेरहार्ड एरेस्मस ने सख्त नाराजगी जताई की लघु दैनिकों (टेबलाइड) ने ज्यादा खेदजनक खबर छापी थी कि नामीबिया की श्रीलंका पर विजय की आशा का प्रतिशत केवल ग्यारह था। किन्तु अब यह तो शत प्रतिशत हो गया!!

 

इस समूचे मैच में चमत्कार तो तब हुआ जब इक्कीस साल के बेन शिकोंगो ने पहले ही दौर में श्रीलंकाई धुरंधरों, पथूम निशंक (सिर्फ नौ रन) और धानुष्का गुनाथिलका को (शून्य पर) आउट कर पवेलियन लौटा दिया। श्रीलंकाई दर्शकों को सांप सूंघ गया था।

 

इस उलटफेर में ”मैन आफ दि मैच” वाली जीत से प्रमुदित होकर कप्तान गेरहार्ड एरेस्मस ने जॉन फ्राइलिंक और जेवे स्मिथ को। उन्होंने 44 तथा 31 रन बनाये। बस 55 रन से हराया। एरेस्मस ने दावा भी किया कि गत साल दुबई में श्रीलंका से सात विकेट की हार की क्षतिपूर्ति अब पूरी हो गयी। कप्तान का विचार था एक साल बीते श्रीलंका ने अपने टी—20 विश्व कप के पहले मैच में नामीबिया को 96 रन पर आउट कर दिया था और सात विकेट से हराया था।

 

”एक वर्ष भी नहीं बीता हमने टेबल पलट दी। एरेस्मस ने कहा : “पिछले साल अधिक प्रचार और बचकाना विश्वास था। यह वर्ष अधिक था कुछ जानने का।” हालांकि स्कॉटलैंड को नामीबिया ने हराया लेकिन बड़ी टीमों ने उन्हें खारिज कर दिया था। ”हम अफगानिस्तान, पाकिस्तान और न्यूजीलैंड से 45 रन या उससे अधिक के अंतर से और भारत से नौ विकेट से हार गए, और सबक सीखा गये।”

 

इस मैच में नामीबिया ने पांच ओवर में तीन विकेट पर 35 रन बनाए और 15वें ओवर में छह विकेट पर 93 रन बनाकर प्रगति दिखाई। जान फ्रिलिंक और जेआई स्मिथ ने श्रीलंकाई हमले का फायदा उठाया। इसी विजय के संदर्भ में इस अफ्रीकी राष्ट्र, जो जर्मनी का उपनिवेश रहा, में क्रिकेट के क्रमिक इतिहास पर नजर डाले। नामिब का अर्थ है ”विशाल भूमि।”

 

राष्ट्रीय स्वाधीनता मिलने (1950) के पूर्व तक यहां का शासन सुदूर बर्लिन से चलता था। इतना उपेक्षित था कि इसके सागरतट को ”कंकाल का स्थान” कहा जाता था। इतना दुर्गम था। पड़ोसी जिम्बाब्वे राष्ट्र में विक्टोरिया जलप्रपात (उनकी जुबां में मोसी—ओआ—तुन्या अर्थात धुआंधार) विश्व के सात महान आश्चर्यों में एक माना जाता है। करीब तीन दशक हुए जिम्बाम्वे गणराज्य के राष्ट्रपति कामरेड रोबर्ट मुगाबे थे। तब हमारे अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार संगठन का प्रतिनिधि अधिवेशन हरारे में आयोजित हुआ था। राष्ट्रपति को देखने का मुझे मौका मिला था। तानाशाह मुगाबे का विशाल राजनिवास भी।

 

वहां के प्रवेश मार्ग पर लिखा था कि ”बिना सूचना और अनुमति के आने पर सुरक्षा गार्ड गोली से भून देंगे।” हम सब पत्रकार समझ गये कि तानाशाही में क्या होता है। नामीबिया के क्रिकेट का इतिहास 1930 से शुरू होता है। इस जर्मन उपनिवेश में कैदियों ने क्रिकेट खेलना शुरू किया था। आज वहीं निर्धनता से पिछड़ा अफ्रीकी गणराज्य विश्वकप की दौड़ में अग्रणी है।

 

के. विक्रम राव

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

–लेखक इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।


नोट :- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ‘ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन’ इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.


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