क्या था बाबा साहब का ड्रीम प्रोजेक्ट? संजीव खुदशाह | newsforum
समतामूलक भेदभाव रहित समाज की स्थापना के लिए बाबा साहब ने कई स्वप्न देखे थे, लेकिन उनके दो सपने ऐसे थे जिन्हें उनका ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है ।
(1) जाति उन्मूलन
(2) सबको प्रतिनिधित्व
1 जाति उन्मूलन – वंचित समाज जाति उन्मूलन चाहता है। जाति का उन्मूलन यानी सभी जाति बराबर, बिना भेदभाव के जाति विहीन समाज की स्थापना।
हमारे देश में सुई से लेकर हवाई जहाज तक कोई अविष्कार नहीं हुआ। इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी। क्योंकि हमारे पास वह सब काम करने के लिए जातियां थी। कपड़े धोने के लिए वाशिंग मशीन नहीं बना क्योंकि धोबी है। गटर साफ करने के लिए मशीन नहीं बना, क्योंकि भंगी जाति हैं। तेल निकालने के लिए मशीन नहीं बना क्योंकि तेली जाति है। यहां की हर जाति अपनी जाति पर गर्व करती है। यही इस जातीय पहलू का सबसे घृणित पक्ष है। और यह जातियां एक दूसरे से नफरत करते हैं। जो कि देश भक्ति के लिए एक बड़ा रोड़ा है। ऊंची जातियां अपने से नीची जातियों के साथ भेदभाव करती है। ऐसा ही भेदभाव ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र में है। और इनके बीच में भी है। ब्राह्मण- ब्राह्मण में भी भेद है। क्षत्रिय- क्षत्रिय में भी भेद है। उंच-नीच है। उसी प्रकार दलितों में भी भेद है, ऊंच-नीच है। इस जाति प्रथा को खत्म करना चाहते थे बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर।
देश के अंबेडकर वादियों की यह जिम्मेदारी है कि वह जाति उन्मूलन के लिए कदम बढ़ाएं। अक्सर ऐसा होता है दलित समाज, सवर्णों से जाति उन्मूलन की उम्मीद तो रखता है। वह चाहता है कि सवर्ण समाज उसके साथ वैवाहिक संबंध बनाएं, लेकिन अपने दलित समाज के निचली जातियों से जाति उन्मूलन के लिए वह कतई तैयार नहीं होता।
इसे एक उदाहरण से आप समझ सकते हैं “दो दोस्त थे, एक चमार समाज से था, एक मेहतर समाज से। दोनों अंबेडकरवादी थे, बाद में दोनों बौद्धिष्ट हो गए। 20 साल पुरानी दोस्ती थी। एक ही विभाग में अच्छे पदों पर नौकरी करते थे, लेकिन दोनों परिवार में जब शादी की बात आई। तो चमार जाति के बुद्धिस्ट ने यह कहकर मना कर दिया कि हम स्वीपर से संबंध नहीं बनाना चाहते। चाहे वह बौद्धिष्ट हो।” यह उत्तर प्रदेश के मेरठ की सच्ची घटना है।
यानी दलितों की अगड़ी जाति अपने से पिछड़ी जाति के साथ जाति उन्मूलन को तैयार नहीं है। यदि अंबेडकरवादी देश में सवर्णों के साथ जाति उन्मूलन करना चाहते हैं तो पहले अपने बीच जाति उन्मूलन करना होगा। तभी बाबा साहब का सपना पूरा हो सकता है।
1 सबको प्रतिनिधित्व – जिस प्रकार भारत के सुप्रीमकोर्ट, हाईकोर्ट में एक जाति विशेष का कब्जा है। ज्यादातर ब्राह्मण ही जज बनाए जाते हैं। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व कानून (आरक्षण) लागू नहीं है। कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से जाति विशेष या परिवार विशेष के लोग बार-बार जज चुन लिए जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि यह जज, आरक्षण, महिलाओं, एट्रोसिटी आदि के खिलाफ बार-बार फैसले देते हैं तथा वंचित जातियों के साथ पक्षपातपूर्ण निर्णय लेते हैं।
ठीक इसी प्रकार SC. ST. OBC, मूलनिवासी, बुद्धिस्ट या अंबेडकर जयंती के नाम पर बनने वाले संगठन या होने वाले कार्यक्रम ने दलितों में ऊंची जातियों के द्वारा कब्जा कर लिया जाता है। छोटी जाति के लोग चंदा देने, भीड़ बढ़ाने, दरी बिछाने तक सीमित हो जाते हैं। ऊंची जाति के दलित स्टेज तक में छोटी सफाई कामगार जातियों को प्रतिनिधित्व देने को तैयार नहीं है ना ही उन संगठनों का नेतृत्व देने के लिए तैयार होते हैं। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि छोटी और अल्पसंख्यक खासतौर पर सफाई कामगार जातियों के साथ किस प्रकार भेदभाव होता होगा। क्या यह लोग जो प्रतिनिधित्व की लड़ाई, सवर्णों से लड़ रहे हैं ? वह अधिकार अपने से छोटी अल्पसंख्यक दलित जातियों को देने के लिए तैयार हैं ? जाहिर है सुप्रीम कोर्ट के जज की तरह पक्षपात भी करते होंगे। इन आधारों पर नौकरी में आरक्षण की स्थिति का अंदाजा आप लगा सकते हैं।
अंबेडकर जयंती के अवसर पर उनके इन ड्रीम प्रोजेक्ट को याद करना जरूरी है। वह जिस अंतिम व्यक्ति को प्रतिनिधित्व देना चाहते थे उन तक प्रतिनिधित्व मिला या नहीं मिला ? यह बड़ा प्रश्न है। उनके साथ जाति उन्मूलन हुआ या नहीं ? यह बड़ा प्रश्न है। आज हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने में अपना अहम योगदान दे।
जय भीम
©संजीव खुदशाह, रायपुर, छत्तीसगढ़
लेखक देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं और प्रगतिशील विचारक, कवि, कथाकार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। “सफाई कामगार समुदाय” एवं “आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग”, “दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल” आपकी चर्चित कृतियों में शामिल है। आपकी किताबों का मराठी, पंजाबी, ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
लेखक परिचय :- जन्म 12 फरवरी 1973 को बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ। शिक्षा एमए, एलएलबी। आप देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किए जाते हैं और प्रगतिशील विचारक, कवि, कथाकार, समीक्षक, आलोचक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। आपकी रचनाएं देश की लगभग सभी अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकीं हैं। “सफाई कामगार समुदाय” एवं “आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग”, “दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल” आपकी चर्चित कृतियों में शामिल है। आपकी किताबों का मराठी, पंजाबी, ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। आपकी पहचान मिमिक्री कलाकार और नाट्यकर्मी के रूप में भी स्थापित है। छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन से निबंध विधा के लिए पुर्ननवा पुरस्कार सहित आप कई पुरस्कार एवं सम्मान से सम्मानित किए जा चुके हैं।
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