.

स्वतन्त्रता-संघर्ष की थाती बचाएं, योगी से बुद्धिकर्मियों की अपील | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

के. विक्रम राव

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

–लेखक इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।


 

जादी के अमृत महोत्सव के दौर में पश्चिमी लखनऊ की डेढ़ सदी पुरानी इमारत रिफा-ए-आम का अधिग्रहण तथा जीर्णोध्दार संभव था। शासन उदासीन रहा। अनमना भी। नतीजन यह ऐतिहासिक भवन उपेक्षित रही। ढहती रही। भू माफिया की दृष्टि भी पैनी होती गयी। एक माफिया ने तो 1857 वाले बेलीगारद के अंदर ही बहुमंजिला ढांचा खड़ा कर दिया था। योगी सरकार के बुल्डोजर ने उसे गिरा दिया। रिफा-ए-आम तो साक्षी रहा गांधी-तिलक-जिन्ना-नेहरू-पटेल की सभाओं का। श्रोता भी था उनके अंग्रेज-विरोधी भाषणों का। यह लखनऊ सिटी स्टेशन से लगा हुआ है। राजभवन से 5 किलोमीटर दूर। इस बौद्धिक केंद्र पर दैनिक “नवभारत टाइम” में आज (5 नवंबर 2022) द्रवित कर देने वाली रपट छपी है। पृष्ट 5 पर तीन कालम की।

 

यह अखबारी रपट कहती है: “रिफा-ए-आम” क्लब ग्राउंड को अवैध बस संचालन का अड्डा बना रखा गया था। डग्गामार बसों के संचालन की सूचना पर जेसीपी एलओ ने शुक्रवार को छापा मारा। मौके पर मिली 11 डग्गामार बसों को सीज करने के साथ ही आठ चालकों को दबोचा गया। इसके साथ ही संचालकों के खिलाफ केस दर्ज करवाया गया है।”

 

इसके पूर्व (2 अप्रैल 2022) के एक अन्य समाचार के अनुसार :” अवैध रूप से कब्जाए जमीन पर शादी समारोह के आयोजन के साथ ही वहाँ बाजार भी लगाए जा रहे हैं। किराए पर दुकानें भी उठाई गई। लंबे समय से दाऊद इब्राहिम के गुर्गे यहाँ अवैध कब्जा जमाये हुए थे। बाकायदा सुनियोजित तरीके से कब्जाए जमीन पर करोड़ों रुपए का कारोबार किया जा रहा है। एलडीए की ओर से वजीरगंज थाने में दर्ज एफआईआर के मुताबिक रिवर बैंक कॉलोनी-स्थित खसरा नंबर 147 नजूल की जमीन है। इसे रिफा-ए-आम क्लब योजना के लिए आरक्षित किया गया था।

 

गारा, गुम्मा, चारा, चूरा, आलन से बना यह संघर्ष का प्रतीक तो है, पर यह प्रत्यक्षदर्शी भी रहा फिरंगियों के खिलाफ भारत की एक मुहिम का। मोहम्मद अली जिन्ना तब तक हिंदुस्तानी थे, विभाजन के समर्थक नहीं थे। इसी क्लब के प्रांगण मे हिन्दू-मुस्लिम एकता पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग की एक संयुक्त बैठक हुई थी जिसके कारण 1916 का लखनऊ समझौता हुआ। इसी परिसर में हस्ताक्षर किए गए थे।

 

महात्मा गांधी ने 15 अक्तूबर 1920 को हिंदू-मुस्लिम एकता पर उद्बोधन के लिए इस भवन का दौरा किया। अप्रैल 26, 1922 को जवाहरलाल नेहरू और वल्लभभाई पटेल ने स्थानीय लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए भाषण दिए। स्वदेशी आंदोलन को तेज करने के लिए प्रगतिशील लेखक आंदोलन 10 अप्रैल 1936 में यही प्रारम्भ किया गया था। इसे मुंशी प्रेमचंद ने संबोधित किया था।

 

इसी रिफा-ए-आम का आगेदेखू रूप ही था चारबाग रेलवे स्टेशन पर हुई एक घटना। इसी प्लाटेफार्म पर बापू से जवाहरलाल नेहरू पहली बार मिले थे। तब दो खोंचेवाले चाय बेच रहे थे। उनकी पुकार थी: “हिन्दू चाय” और “मुस्लिम चाय।” बापू ने दोनों को बुलाया। तीसरा कुल्हड़ लिया। दोनों से आधी-आधी चाय ली और तीसरे कुल्लड़ मे डाली। फिर कहा यह हिंदुस्तानी चाय है। इसे बेंचे।” यहीं से विदेशी साम्राज्य की नींव कमजोर होनी चालू हो गई थी।

 

इस क्लब के मूल में एक जनवादी मकसद भी था। तब मोहम्मदबाग क्लब और यूनाइटेड सर्विसेज क्लब को लाट साहब ने निर्मित किया था। वहां कुत्तों और हिंदुस्तानियों का प्रवेश वर्जित था। प्रतिरोध में अवध के नवाबी खानदान ने रिफा-ए-आम क्लब की स्थापना की थी। क्लब आज जर्जर हालत में है। एक समय मे यह भारत में राष्ट्रीय आंदोलनों का केंद्र हुआ करता था।

 

फ़ारसी शब्द “रिफ़ा” का मतलब होता है ख़ुशी और “आम” का मतलब है सामान्य। ये क्लब सामान्य लोगों को ख़ुशियां देता था। इसका मकसद रहा था कि साधारण लखनवी और अन्य आगन्तुको के वास्ते मिलने की जगह हो। स्वाधीनता के शुरुआती पाँच छः दशकों से अंग्रेजों के दौर तक आम हिंदुस्तानियों के लिए खुला, यह लखनऊ का पहला क्लब था। इसीलिए इसका नाम रिफा-ए-आम (जनहित) क्लब रखा गया था। इसी जगह प्रथम विश्वयुद्ध के समय होमरूल लीग के जलसे आयोजित होते थे। इससे अवध के शिया नवाबों ने मजहबी समंजस्य कायम किया था।

 

यहीं पर पहले विश्वयुद्ध के जमाने में होमरूल लीग का वह जलसा होना तय हुआ था जहां एनी बेसेंट की गिरफ्तारी पर प्रतिरोध जताने के लिए शहर के राष्ट्रभक्त जमा हुये थे। लेकिन अंग्रेज सरकार ने इसे गैरकानूनी करार दिया था। ये लखनऊ में अपने किस्म की पहली घटना थी। तब हथियारबंद पुलिस से रिफा-ए-आम मे भर गई थी। सारे शहर में जबरदस्त सनसनी फैल गई थी। यहीं पर महात्मा गांधी ने लखनऊवालों से असहयोग आंदोलन से जुड़ने की अपील की थी।

 

इस खूबसूरत इमारत को अब लोगों ने इस कदर नुकसान पहुंचाया है कि ये नीचे से एकदम कमजोर हो चुकी है। इस पर अधिकार के लिए कई पक्षों में जंग छिड़ी हुई है। बिल्डरों और भू-माफिया की बुरी नजर भी इस पर है। इसका ऐतिहासिक मैदान कूड़ा डालने के लिए इस्तेमाल हो रहा है जिस कारण यहां गंदगी का अंबार है। ये नशेड़ियों का भी अड्डा है। इस पर गैरकानूनी ढंग से डग्गामार बसें खड़ी की जा रही हैं।

 


नोट :- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ‘ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन’ इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.


ये भी पढ़ें :

संकुल केंद्र दाबो में नवनियुक्त प्रधान पाठकों एवं शिक्षकों को किया गया सम्मान | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन


Back to top button