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एससी-एसटी एक्ट क्षतिपूर्ति में बंदरबाट | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©राजेश कुमार बौद्ध

परिचय- प्रधान संपादक, प्रबुद्ध वैलफेयर सोसाइटी ऑफ उत्तर प्रदेश


 

शादी विवाह अनुदान योजना, किसान दुर्घटना बीमा योजना, और कृषि यंत्रों पर मिलने वाले भारी अनुदान योजना की तरह एससी-एसटी एक्ट में मिलने वाली क्षतिपूर्ति योजना भी बिचौलियों के भेंट चढ़ता नजर आ रहा हैं। सबसे अधिक अनुदान एससी-एसटी एक्ट में ही मिलता है, रेप और मर्डर जैसे मामलों में सिर्फ मुकदमा दर्ज होते ही पीड़ित महिला या पुरुष परिवार को आठ लाख से अधिक की रकम मिलती हैं। वह भी इतनी बड़ी रकम मात्र एफआईआर दर्ज होते ही पीड़ित परिवार को मिलना शुरू हो जाता हैं।

 

मामूली मार पीट जैसे घटनाओं में एक लाख मिलता है, यहाँ तक कि अगर किसी सवर्ण ने किसी एससी से मृत जानवरों के लिए कब्र खोदने को कह दिया और उसने एफआईआर दर्ज करा दी उसे एक लाख क्षतिपूर्ति मिलती हैं। वहीं पर अगर किसी सवर्ण ने किसी एससी महिला का शरीर भूल से या फिर जानबूझकर छू लिया तो समझो महिला को दो लाख रुपये की क्षतिपूर्ति मिलती हैं, अगर किसी ने महिला पर एसिड डाल दिया और जिसका चेहरा दो फीसदी भी जल गया है तो महिला को क्षतिपूर्ति के रूप में सरकार आठ लाख रुपये देती हैं। क्षतिपूर्ति देने का यह आलम है कि अगर कोई व्यक्ति किसी महिला का पीछा ही कर दिया और महिला ने एफआईआर दर्ज करा दिया तो उसे दो लाख मिल जायेगा।

 

यही वह भारी भरकम धनराशि हैं जिसकी नजर गॉव और शहर के बिचौलिया उठाते हैं, क्षतिपूर्ति की रकम दिलाने के लिए वह पीड़िता से डरा धमका कर सौदा करते हैं। चूंकि अधिकार एससी-एसटी के लोगों को क्षतिपूर्ति की रकम कैसे और कितनी राशि मिलती हैं इसकी जानकारी नहीं रहती है, इसी फायद बिचौलिया उठाते है। अमूमन सौदा आधे की रकम पर होता है इसके लिए प्रयास यह रहता है कि आधी रकम एडवांस में ले लिया जाता हैं। पीड़ित यह सोच कर हामी भर देता है, या दे देता है कि उसे घर बैठे लाखों रूपये मिल जायेगा। इन बिचौलियों की पकड़ थाने से लेकर क्षतिपूर्ति का प्रस्ताव भिजवाना और धन जारी कराने तक के विभाग में रहती है।

 

आजमगढ़, पुलिस अधीक्षक कार्यालय में तैनात एक सिपाही ने दुष्कर्म पीड़िता को अनुदान को दिलाने के एवज में 25 हजार रूपये मांगे थे। जीयनपुर कोतवाली क्षेत्र के एक गॉव की बालिका से दुष्कर्म का मुकदमा कोतवाली में दर्ज हुआ था। बालिका अनुसूचित जाति के होने के कारण इस मामले में उसे अनुदान मिलना था,अनुदान की राशि ढाई लाख रूपये की पहली किस्त बालिका के खाते में आ गयी, परिवार वालों ने दुसरी किस्त के लिए एस पी कार्यालय में आवेदन दिया।

 

दुसरी किस्त भेजने के लिए पुलिस आफिस के विशेष जांच प्रकोष्ठ में तैनात आरक्षी दिलीप कुमार ने 25 हजार रूपये की मांग की जो 20 हजार रूपये में तय हो गयी। दुसरी घटना गोरखपुर के चौरीचौरा, सोनबरसा चौकी प्रभारी धर्मवीर सिंह, महिला सिपाही वीना शुक्ला और आरती वर्मा के खिलाफ लूट, आपराधिक साजिश, धमकी देने, वसूली करने और एससी-एसटी एक्ट के तहत चौरीचौरा थाने में कोर्ट के आदेश पर केस दर्ज किया गया है।

 

बेलना खुर्द निवासी गीता ने कोर्ट में दिये गये प्रार्थना पत्र में कहा था कि 24 दिसम्बर 2020 को सोनबरसा चौकी प्रभारी दो महिला सिपाही के साथ घर आए और मुझे पूछताछ करने की बात कहते हुए चौकी ले गए, वहां मेरी जाति पूछी गयी और फिर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए गाली देने लगे। इसकी सूचना एसएसपी से की लेकिन कुछ नहीं हुआ थक हार कर कोर्ट की शरण ली।

 

अमर उजाला-गोरखपुर, 28 मार्च 2021- पेज-5-7

 

एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मुकदमें और दिए गए क्षतिपूर्ति की रकम को देखकर कहा जा सकता है कि बस्ती जिले में अनुसूचित जाति के लोग सुरक्षित नहीं है। एक साल से अधिक समय में 250 एससी एक्ट के तहत दर्ज मुकदमें और दिए गए क्षतिपूर्ति के नाम पर चार करोड़ से अधिक की रकम देना यह साबित करता है कि इस जिले में अनुसूचित जातियों पर उत्पीड़न चरम सीमा पर है। इस मामले में एससी-एसटी आयोग की भूमिका मूकदर्शक की तरह रहती है।

 

एससी-एसटी एक्ट के तहत क्षतिपूर्ति के साथ यह भी प्राविधान है कि अगर किसी दलित की हत्या,मृत्यु, सामूहिक हत्या, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और डकैती के दौरान कोई स्थाई रूप से अक्षमता हो गया है,

तो मृत व्यक्ति की विधवा या अन्य आश्रित को प्रति माह पांच हजार का पेंशन महंगाई भत्ते के साथ मिलेगा।मृतक के कुटुंब के सदस्यों को रोजगार, कृषि भूमि, घर दिया जाएगा।

 

इतना ही नहीं पीड़ित के बालकों की स्त्रातक तक की शिक्षा की पूरी लागत और उनका भरण-पोषण किया जायेगा। तीन माह तक निःशुल्क अनाज, बर्तन देने की व्यवस्था है, जब इसके बारे में जिला समाज कल्याण अधिकारी कार्यालय से पता किया गया तो पता चला कि आज तक इसका लाभ किसी को भी नहीं मिला। कहते हैं कि आज तक पुलिस ने किसी का प्रस्ताव ही नहीं भेजा,जिस तरह पुलिस क्षतिपूर्ति के लिए प्रस्ताव भेजती हैं, उसी तरह नौकरी और पेंशन सहित अन्य का भी प्रस्ताव भेजना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं करते हैं।

 

एससी-एसटी एक्ट के पीड़ित को मुआवजे की आधी से भी कम रकम मिलती हैं, बंदरबाट में बिचौलियों की रहती हैं महत्वपूर्ण भूमिका, पुलिस और धन जारी करने वाली संस्था पल भी उठे रहे हैं सवाल कि पीड़ित परिवार को सीधे क्यों नहीं मिल रहा है क्षतिपूर्ति की रकम।

 

 

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

 

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