प्रकृति के तीन गुण | ऑनलाइन बुलेटिन
©संतोष कुमार यादव
परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़.
प्रायः सभी मनुष्यों और प्राणियों तथा प्राकृतिक वस्तुओं में हम अलग – अलग गुण और स्वभाव को देखते और अनुभव करते हैं, परंतु सभी में अलग- अलग गुण न होकर प्रायः प्रकृति के तीन गुण ही मुख्य है। मानव या जीव – जंतुओं के शरीर भी प्रकृति ही है मनुष्य, प्राणियों या प्रकृति तीन पदार्थों या तत्वों से निर्मित है –
- (1) प्रकृति (अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश।)
- (2) पुरुष (आत्मा या परमात्मा)
- (3) माया (मन, बुद्धि, अहंकार एवम् इनसे उत्तपन्न भावनाएं जैसे – काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, प्रेम, ममता, आदि)
प्रकृति के तीन गुण –
- (1) तमस गुण
- (2) रजस गुण
- (3) सत्व गुण
- (1) तमस गुण
यह सभी गुणों में निम्न स्तर का गुण है, यह नकारात्मक गुण है इसे हम अवगुण कहते हैं। इस गुण में काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, अहंकार प्रमुख है।
तमस गुण के लक्षण-
- (1) यह गुण अंधेरे का प्रतीक है।
- (2) सत्य – असत्य का ज्ञान नहीं होता है।
- (3) यथार्थ से अनभिज्ञ रहता है तथा यथार्थ (सत्य) को जानने की जिज्ञासा नहीं होती है।
- (4) तमस गुण अंधकार, मौत, विनाश, अज्ञानता, सुस्ती, प्रतिरोध पदावनाति, निम्न जीवन स्तर का प्रतीक है।
तमस गुण के उत्पन्न होने के कारण-
- (1) तामसिक भोजन जैसे- मांस, मंदिरा, मछली, मसालेदार भोजन बासी या खमीर वाला भोजन।
इस प्रकार के भोजन करने से जड़ता, भ्रम उत्पन्न होता है। मानसिक तनाव और क्रोध आता है, शरीर में गरिष्ठ भोजन करने के कारण शरीर व मन सुस्ती आता है।
- (2) तामसिक कामना या इच्छा –
मन में तामसिक भोजन करने की इच्छा होती है और मनुष्य या प्राणी तामसिक भोजन करता है। तामसिक भोजन से ही तामसिक विचार या व्यवहार हम करने लगते हैं।
तमस गुण से उत्तपत्ति –
- (1) अज्ञानता (अविद्या)
- (2) मोह(किसी व्यक्ति या वस्तु के प्रति अत्यधिक लगाव या आसक्ति)
- (3) प्रमाद (पागलपन में व्यर्थ कार्य करने की प्रवृत्ति)
तमस गुण का मनुष्य या प्राणियों पर दुष्प्रभाव-
आलस्य, लापरवाही, राग, द्वेष, धोखाधड़ी और असंवेदनशीलता, आलोचना, गलती ढूंढना, कुंठा, लक्ष्यहीन जीवन, तार्किक सोच की कमी, भविष्य की योजनाओं की कमी, बहाने बनाना, ज्यादा खाना, ज्यादा सोना, नशीली पदार्थों का सेवन करना आदि कई दुर्गुण है।
तमस गुण में मृत्यु –
तमस गुण का विचार या व्यवहार करते हुए किसी मनुष्य की मृत्यु होती है तो वह पशु, पक्षी तथा अन्य जीव जंतुओं के रूप में जन्म लेता है।
तमस गुण को दूर करने के उपाय –
- (1) तमस गुण को पहले रजस गुण में और फिर सत्व गुण में धीरे- धीरे परिवर्तित किया जा सकता है ।
- (2) तमस गुण को सीधे सत्वगुण में तथा शुद्ध सत्वगुण में परिवर्तित करना अत्यंत कठिन कार्य है परंतु दृढ़ संकल्प और परमात्मा में पूर्ण समर्पण, अद्वैतभक्ति, विश्वास, निष्काम कर्म से परिवर्तित किया जा सकता है।
(2) रजसगुण या राजसगुण –
जिस मनुष्य या जीवों में एशोआराम की चाहत होती है। या अत्यधिक सुख की लालसा होती है तब वह राजसिक गुण से युक्त होता है।
रजस गुण के लक्षण –
- (1) इस गुण में भोगविलास तथा दिखावे की रुचि उत्पन्न होती है।
- (2) भौतिक और सांसारिक उन्नति होती है।
- (3) सामाजिक, परिवारिक, राष्ट्रीय कर्तव्य के प्रति जागरूक रहते हैं।
- (4) वर्तमान समय में अधिकांश लोग इसी श्रेणी में आते हैं।
- (5) अत्यधिक धन संग्रह, पद, प्रतिष्ठा, मान, सम्मान को प्राप्त करने की इच्छा होती है।
रजस गुण के उत्तपत्ति के कारण-
- (1) राजसिक भोजन जैसे- ज्यादा नमकीन, मसालेदार, कड़वी, खट्टे पदार्थ, मांस, शराब, अन्य नशीली पदार्थ का सेवन।
राजसिक भोजन से बुद्धि उत्तेजित होता है और यह कुछ समय के लिए शरीर को ऊर्जा से भर देता है।
- (2) राजसिक कामना या इच्छा-
राजसिक भोजन करने के पीछे मुख्य कारण हमारी मन की इच्छा होती है। भोग विलास करने की इच्छा तथा लोगों को या समाज को दिखाने की प्रवृत्ति या सामाजिक स्टेटस (प्रस्थिति) बनाए रखने की प्रवृत्ति।
रजस गुण से उत्पत्ति-
- (1) अत्यधिक सुख, आनंद, या समृद्धि की कामना या इच्छा ।
- (2) लोभ उत्पन्न होता है।
- (3) आसक्ति (किसी व्यक्ति या वस्तु के प्रति अत्यधिक लगाव होना)
- (4) सकाम भाव जागृत होता है।
- (5) 11 इंद्रिय (5 ज्ञानएंद्रिय,5 कर्मोएंद्रीय तथा 1मन) की सुख की लालसा हमेशा बनी रहती है।
रजस गुण के प्रभाव –
इच्छा पूर्ण न होने पर क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, द्वेष की भावना मन में आ जाती है। स्वार्थी जीवन, मन में संतोष न होने के कारण हमेशा मन अशांत रहता है। जीवन में शारीरिक रोग तथा मानसिक अशांति प्राप्त होती है।
रजस गुण में मृत्यु –
रजस गुण में मृत्यु होने पर मनुष्य का पुनः मनुष्य के रूप में जन्म होता है, क्योंकि मृत्यु के समय कामना या इच्छा अपूर्ण होती है। इच्छा तो अनंत है जो कभी भी पूर्ण नहीं होती है।
रजस गुण को दूर करने के उपाय –
- (1) रजस गुण को धीरे – धीरे सत्वगुण में परिवर्तित किया जा सकता है।
- (2) रजस गुण को सीधे शुद्ध सत्वगुण में परिवर्तित करना अत्यंत कठिन कार्य है परंतु दृढ़ संकल्प से शुद्ध सत्वगुण में परिवर्तित किया जा सकता है।
- (3) सत्वगुण –
सत्वगुण निर्मल है यह तमोगुण तथा रजोगुण से श्रेष्ठ है। सत्वगुण का अर्थ है सात्विक विचार या व्यवहार को अपनाना एवम सात्विक कर्म करना। सत्य, अहिंसा, प्रेम, दया, करुणा, क्षमा, शांति, धैर्य आदि सत्वगुण है।
सत्वगुण के लक्षण –
- (1) सत्वगुण का आचरण परमात्मा के ज्ञान में सहायक है।
- (2) सत्वगुण में भी सांसारिक वस्तुओं की कामना होती है जैसे- धन, पद, प्रतिष्ठा, मान, सम्मान, सिद्धी आदि।परंतु मनुष्य स्वयं के साथ – साथ लोककल्याण के भावना से इन सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति करता है एवम उपभोग करता है।
- (3) परब्रह्मा के वास्तविक स्वरूप का दर्शन होता है।
सत्वगुण की उत्तपत्ति के कारण –
- (1) शुद्ध शाकाहारी भोजन या साधारण भोजन जैसे – फल, सब्जियां, दूध, शहद, अनाज, दल, घी, मक्खन, कंदमूल, खिचड़ी, दलिया, खीर आदि। इसमें आधिकांश भोजन उबला हुआ होता है।
सात्विक भोजन करने से मन शांत रहता है, संतुलित भोजन से शरीर का पोषण उचित रूप से होता है। एवम मन में सात्विक विचार उत्तपन्न होते हैं।
- (2) सात्विक कामना या इच्छा।
सात्विक गुण से उत्पत्ति –
- (1) ज्ञान (आत्मज्ञान)।
- (2) शांति।
- (3) सन्तोष।
- (4) सुख या खुशी।
- (5) परम आनंद।
- (6) दैवीय गुणों की उत्तपत्ति ।
- (7) मोक्ष ।
- (8) निष्काम कर्म भावना।
- (9) स्थितप्रज्ञ ।
- (10) अकर्ता भावना।
- (11) अनाशक्ति ।
- (12) विरक्ति।
- (13) दृष्टा भावना।
सत्वगुण के प्रभाव –
सत्वगुण के कारण मन, बुद्धि, चित, आत्मा में सात्विक विचार आने लगते हैं, सत्य, अहिंसा, शांति, संतोष, त्याग, दया, तेज, क्षमा, धैर्य, अक्रोध,(क्रोध न करना), निंदा न करना, बिना कारण के कोई कार्य न करना, सुख के प्रति आकर्षित न होना व दुःख के प्रति घृणा न होना। अहंकार न करना, मन तथा शरीर की शुद्धता, धर्म का द्रोह न करना आदि गुणों का विकास होता है।
सत्व गुण के प्रकार –
- (1) अशुद्ध सत्वगुण।
- (2) शुद्ध सत्वगुण।
(1) अशुद्ध सत्वगुण या मालिन सत्वगुण-
इसे अशुद्ध या मालिन सत्वगुण इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें मनुष्य सकाम कर्म करता है, तथा सांसारिक भोग विलास और सांसारिक वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए सत्व आचरण करता है।
अशुद्ध सत्वगुण के लक्षण-
- (1) धन संग्रह करना ।
- (2) पुण्य संग्रह करना।
- (3) पद।
- (4) प्रतिष्ठा।
- (5) मान – सम्मान प्राप्त करना।
- (6) सिद्धी प्राप्त करना।
- (7) भौतिक या सांसारिक वस्तुओं का संग्रह करना।
(2) शुद्ध सत्वगुण –
हमेशा परमात्मा में स्थित (स्थिर) रहना। इसमें निष्काम कर्म करते हैं, यह विकार रहित है, निर्मल है।
“सौ गंगा स्नान से अतिउत्तम है, परब्रह्मा का ध्यान।”
हमेशा मनुष्य या आत्मा परब्रह्मा में स्थिर रहता है। और धीरे – धीरे वह स्वयं परब्रह्मा का रूप धारण कर लेता है या परब्रह्मा के साथ एकीकर हो जाता है।
शुद्ध सत्वगुण के लक्षण –
- (1) आत्मज्ञान
- (2) स्थितप्रज्ञ
- (3) निष्काम कर्म
- (4) अनासक्ति
- (5) विरक्ति भावना।
- (6) अकर्ता की भावना।
- (7) दृष्टा की भावना।
- (8) त्रिगुणातित ।
सत्वगुण में मृत्यु –
अशुद्ध सत्वगुण में मृत्यु होने पर स्वर्गलोक आदि की सुख की प्राप्ति होती है। तथा शुद्ध सत्वगुण में मृत्यु होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। मनुष्य या आत्मा जन्म – मरण के चक्र से मुक्ति पाकर परब्रह्मा में विलीन हो जाता है। अर्थात् आत्मा अपने मूल स्वरूप को प्राप्त कर लेता है।
अशुद्ध सत्वगुण को दूर करने के उपाय-
अशुद्ध सत्वगुण को शुद्ध सत्वगुण में शीघ्र अतिशीघ्र परिवर्तित किया जा सकता है। परंतु इसके लिए शुद्ध सत्वगुण के लक्षणों को अपनाना अनिवार्य है। आत्मा शुद्ध सत्वगुण को अपनाकर तीन गुणों से परे होकर निर्गुण हो जाता है, अर्थात्। त्रिगुणातित हो जाता है। जो आत्मा का मूल स्वरूप है। परब्रह्मा में विलीन हो जाता है।
रचना के स्त्रोत-
- (1) श्रीमद्भागवतगीता।
- (2) सांख्यदर्शन।