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संकट के इस दौर में भी दलित समाज सोशल मीडिया का सबसे ज्यादा दुरुपयोग कर रहा है…| dalit society

Buddha
डॉ. एम एल परिहार

©डॉ. एम एल परिहार

परिचय- जयपुर, राजस्थान.


 

Dalit Society : The platform which Dalit underprivileged society was looking for for a long time to express itself met with a bang in the form of social media and that too for free, but Dalits are leaving no stone unturned to misuse this valuable medium. . Selfies of the whole day, outside the house, different angles on social media, and otherwise, they do not hesitate to post an entire album of old photos of their family everyday.

 

 

ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन : सोशल मीडिया पर साल भर हम हवाई जन्मदिन मनाने में ही मगन हैं फिर जातिवादी मीडिया को कोसने का हमें क्या हक है ? संकट के इस दौर में भी दलित समाज सोशल मीडिया का सबसे ज्यादा दुरुपयोग कर रहा है.(Dalit Society)

 

दलित वंचित समाज अपनी बात को कहने के लिए लंबे समय से जिस मंच की तलाश में था वह सोशल मीडिया के रूप में धमाके के साथ मिला और वह भी मुफ्त में, लेकिन दलित इस बहुमूल्य माध्यम का दुरुपयोग करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं.

 

सोशल मीडिया पर सारे दिन के, घर बाहर के, अलग-अलग एंगल के सेल्फी, और नहीं तो अपने परिवार के पुराने फोटो का रोज पूरा एलबम डालने में जरा सा भी संकोच नहीं करते है. (Dalit Society)

 

जन्मदिन, नौकरी के एक एक दिन की रिपोर्ट, बीवी बच्चों की पूरी जन्मपत्री, बाईक, कार खरीद, तीर्थ यात्रा, पूजा पाठ ..और नहीं तो कई साल पहले खोए डॉक्यूमेंट या गायों से भरे ट्रक का पीछा करने की पुरानी पोस्ट ही फॉरवर्ड करते रहते हैं. इससे फ्री होते ही अनावश्यक शॉपिंग, टीवी, ताश, मंदिर , किटी पार्टी आदि.

 

कहते हैं टाइम पास करने के लिए क्या करें? हमें अपने परिवार ही नहीं बल्कि दूर के रिश्तेदारों, मित्रों, अफसरों राजनेताओं के जन्मदिन की हवाई बधाइयां देने से ही फुरसत नहीं है. देश दुनिया या सामाजिक मुद्दों से भले ही वास्ता नहीं रखे लेकिन अपने कुनबे का फोकट में जन्मोत्सव मनाकर मानो गढ जीत लेते हैं. (Dalit Society)

 

मजा तो तब आता है जब चापलूस लोग दूसरे अफसरों, राजनेताओं के जन्मदिन पर उनकी फोटो अपने पेज पर लगाकर मनाते हैं या उनकी छोटी छोटी बातों पर बधाइयों की झड़ी लगा लेते है. लेकिन अगले को पता ही नहीं होता है या उसे देखने की फुरसत ही नहीं होती है.

 

पढाई, काम धंधे व समाज की फिकर छोड़ दलित वंचित समाज जन्मदिन मनाने में मगन हैं. खुद के जन्मदिन, शादी की सालगिरह पर बधाईयां लेने की बाकायदा अपील जारी की जाती है.प्लीज हमें प्यार दो, लाइक करो, बधाईयां दो. फेसबुक पर ऐसे हवाई उत्सवों में मित्रों द्वारा कागजी फूलों की वर्षा होती है.अगले को यदि कह दो कि भाईसाहब जन्मदिन की खुशी में अपने गांव या कोलोनी के कुछ बच्चों को कॉपी, पेन, किताब,फल या भोजन दान कर दो…तो फोकट में मिली बधाईयों की रिटर्न गिफ्ट में Thanks. की झड़ी लगाने वाले भाईसाहब, दान भेंट के नाम पर चुप्पी साध लेते है. एक फूटी कौड़ी खर्च किए बिना ही जोरदार जश्न मना लेते हैं. हिंग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा.(Dalit Society)

 

ऐसे लोग हर साल लोगों को बाकायदा याद दिलाते हैं. मैं 40 साल का हुआ, मैं 50, 60 का हुआ, मैं रिटायर हुआ. मुझे बधाईयां दो. किसी मसखरे मित्र ने कमेंट में लिख दिया इतने साल में खुद का पेट और घर भरने के सिवाय आपने समाज को क्या दिया? बेचारे साहब के हवाई जन्मदिन का मजा जमीं पर गिरकर फुस्स हो गया.

 

यदि जीवन संगिनी का जन्मदिन हो तो फिर क्या कहना..टूटी फूटी अंग्रेजी में प्यार के ढोंग का इजहार…मेरी सबकुछ, माइ फुललाइफ, हाफ लाइफ , सनलाइट, मूनलाइट और न जाने क्या क्या.. और इंग्लिश वालों का अलग स्टाइल.(Dalit Society)

 

कई शिक्षित महिलाएं फेसबुक पर अपने जो फोटो शेयर करती है उनके कमेंट पढ़ो तो ताज्जुब होता है. ऐसे कमेंट उस महिला को कोई कह दे तो झगड़ा कर दे. लेकिन फेसबुक पर अपने रूप, रंग, कपड़ों की प्रशंसा में किसी भी तरह के कमेंट से कोई एतराज़ नहीं करती.

 

विडंबना यह है कि जिन लोगों ने कभी अन्न का एक दाना पैदा नहीं किया वे लोग जन्मदिन के दिन अन्न दूध से बने केक को पूरे चेहरे पर लीपकर खाद्य पदार्थों को बर्बाद कर मॉडर्न बनने का ढोंग करते हैं. अब तो गांव की झोपड़ी में भी जन्मदिन के नाम पर पास के कस्बे से केक लाकर काटा जाता है. बेचारे अनपढ़ माता-पिता चुपचाप देखते रहते हैं. ग्रामीण मेहनतकश परिवेश में जन्मदिन मनाने का यह ढोंग देखकर चिंता होती है.

 

सवाल यह है कि लोग अपने गांव में रह रहे माता पिता तभी का जन्मदिन इतना धुमधाम से क्यों नहीं मनाते हैं? घर परिवार में मेहनत की रोशनी से उजियारा फैलाने वाले गांव के पैरेंट्स को शायद कैंडल की रोशनी बुझाना और परिवार के दुखों को काटने वाले माता पिता को केक काटना नहीं आता हो शायद.(Dalit Society)

 

विचार करने की बात है कि जिन मुद्दों में खुद, परिवार व समाज का हित नहीं है उन पर कीमती समय क्यों बर्बाद करें? जीवन में खुशी, आनंद, उत्सव का बहुत महत्व है लेकिन सिर्फ दिखावा हो, धन व समय की बर्बादी हो और लाभ कुछ नहीं, तो चिंता होना जरूरी है.

 

बहुजनों के बुनियादी मुद्दों को जातिवादी मीडिया में जगह नहीं मिलती है. उसे हम पानी पी-पी कर रात दिन कोसते हैं लेकिन अब तो सोशल मीडिया का विशाल माध्यम हमारे हवाले है. अब हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक, वैचारिक, आर्थिक जाग्रति व तरक्की के लिए इसका भरपूर उपयोग कर सकते है. बिजनेस कर सकते हैं. शिक्षा का उजियारा फैला सकते है. अपने दबे हुए विचारों व हमारे आदर्श बुद्ध, कबीर, रैदास, फुले, बिरसा, बाबासाहेब आदि की विचारधारा के प्रचार के लिए सुनहरा अवसर मिला है और वह भी सहज व निशुल्क. काम करो तो कोई नहीं रोकता है लेकिन हमने तो सिर्फ दूसरों को कोसने का सिंगल पॉइंट प्रोग्राम बना जो रखा है.(Dalit Society)

 

मौजूदा हालात को देखते हुए, फ्री में सोशल मीडिया का ऐसा सुअवसर कल जारी रहे या नहीं.. इसलिए इस बहुमूल्य माध्यम का समाज की खुशहाली के लिए दूसरे जाति धर्म को गाली या कोसे बिना शांति व समझदारी से उपयोग कर लो. हाथ में आए हीरे को यूं मत खोओ.

 

समय बहुत तेजी से भाग रहा है और देश दुनिया के हालात भी तेजी से बदल रहे हैं समय कम और काम ज्यादा है इसलिए जो जहां है अपनी जिम्मेदारी समझे. अंधेरे को कोसने व उससे लड़ने की बजाय अपने हिस्से का दीपक जलाए तो उजाला जरूर होगा. अपने समय, धन, ज्ञान, अनुभव, क्षमता व ऊर्जा का भरपूर उपयोग कर समाज व देश को खुशहाल बनाने का संकल्प लेना ही पड़ेगा..Pay Back to Society.(Dalit Society)

 

 

भवतु सब्बं मंगलं.सबका कल्याण हो. सभी प्राणी सुखी हो 

 

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डॉ. एम एल परिहार

 

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