.

पाठशालाओं की दीवारें भी…

©गायकवाड विलास

परिचय- लातूर, महाराष्ट्र


 

पाठशालाएं बनी है यहां पर कितनी बेहाल,

जहां उज्जवल भविष्य की आशाएं टिकी हुई है।

उसी को किया जाता है नज़र अंदाज़ इस देश में,

जहां सिर्फ मानवता,बंधुता और समता ही जनम लेती है।

 

मंदिर,मस्जिद के लिए बहोत पैसा है हमारे पास,

उसी के लिए हम यहां जां निसार कर देते है।

जिस मिट्टी के लिए बहाया ख़ून हमने यहां पर,

उसी मिट्टी के लिए मानवता के बिना कोई भी धर्म नहीं है।

 

पाठशालाओं को हम सब कहते है ज्ञान का मंदिर,

जहां मन का अंधेरा ज्ञान की रोशनी से जलाया जाता है।

और मंदिर,मस्जिद की यहां पर बात करें तो,

वही पर सिर्फ धर्म ही श्रेष्ठ है यही जेहन में बिठाया जाता है।

 

जहां इन्सानों,इन्सानों में भेद-भाव और औरतों को कहते हैं दासी,

और पाठशालाओं में इसी भेद-भाव और विषमता को मिटाया जाता है।

इसी बदलाव से ही होगी सारे जहां में सुख-शांति और समृद्धि,

क्योंकि पाठशालाओं से कोई भी रास्ता यहां बुराई की ओर नहीं जाता है।

 

देखो कभी तुम सभी उसी पाठशालाओं की हालत,

जहां सभी बच्चे फूलों की तरह खिलखिलाते है।

पाठशालाओं की दीवारें भी देती है हमें अखंड एकता संदेश,

उसी दीवारों को हमें यहां युगों-युगों तक सलामत रखना है।

 

पाठशालाएं बनी है यहां पर कितनी बेहाल,

वही पाठशालाएं बनायेगी हमारे देश को सारे जहां में महान।

पाठशालाएं सभी को एक साथ जोड़ना सिखाती है,

जहां सिर्फ मानवता,बंधुता और समता जनम ही लेती है – – –

 

ये खबर भी पढ़ें:

जीवन एक पहेली…

 


Back to top button