जहां तकदीर ही रूठी हो…
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
इस निगाहों में देख लेना तुम, प्यार का गहरा समंदर,
तेरी यादों के गमों में, कैसे बोल पायेंगे ये मेरे अधर।
बढ़ गए कितने फासले, बदल गई तेरी मेरी ये राहें,
टूट गए कस्मे वादे, अब देख रही है तुम्हें ये बाहें।
ये कैसा प्यार किया तुमने मुझसे, कोई खेल समझकर,
देखो अब ये रूह भी जी रही है, कितना तड़प तड़प कर।
किसे सुनाऊं अब मैं, ये दर्द भरी कहानी इस दुनिया में,
जब प्यार ही रूठा हो तो, कौन सुनेगा फरियाद मेरी इस बेवफा संसार में।
दिन-ब-दिन ये यादें तेरी मुझको कितना तड़पाती है,
कैसे कहूं तुम्हें बेवफ़ा, ये दुनिया भी पल-पल रंग बदलती है।
ख़्वाब जिंदगी के दिखाकर, तुम पलभर में ओझल हुई,
इंतजार करते-करते, इस जिंदगी की बहार भी खत्म हुई।
इस निगाहों में देख लेना तुम, प्यार का गहरा समंदर,
जहां तकदीर ही रूठी हो, उसे क्या मिलेगा कोई हमसफ़र।
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