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आज रोने को मन कर रहा है | ऑनलाइन बुलेटिन

©डॉ. वृंदा साखरकर, बहामास

परिचय:- गायनॉकॉलॉजिस्ट, जन्म महाराष्ट्र में हुआ, अमरीका में रहते हैं.


 

वैसे वजह तो कुछ नहीं

हर चीज़ है उसकी जगह सटिक

जीवन का पहिया बेहतर चल रहा है

पर आज रोने को बहुत मन कर रहा है

 

मौसम ख़ुशनुमा है, हवायें बहक रहीं हैं

मिट्टी कि सौंधी सुगंध

मेरे सीने में समाए हुए हैं

उस कोने में पड़े रिसते काले बादल को देखकर

आज रोने को बहुत मन कर रहा है

 

सब सखियाँ बड़ी खुश हैं

हर तरफ़ उल्हास ही उल्हास है

उस मिट्टी के दीये के तेल को तरसते

हताश चेहरों को देख

आज रोने को बहुत मन कर रहा है

 

कसे हुये बदन, सेहत मंद काया

यौवन का शोरगुल हर तरफ़

चारों ओर माया ही माया

बे-दवा बेबस दर्दनाक बचपन देख

आज रोने को बहुत मन कर रहा है

 

तकनीकी अविष्कार

हर पल नयी इजाद

कहनेको तो हम मंगल तक भी पहुँच गए हैं

मांगलिक होने से आये दिन प्रताड़ित होते बहु बेटी को देख

आज रोने को बहुत मन कर रहा है

 

जितना भी मैं सोचूँ

ज़िंदगी खुशहाल है मेरी

हर चीज है बस में मेरे

हर तमन्ना हो रही हैं पूरी

पर ये व्याधि ये पीड़ा

ये आतंक और युद्ध का घेरा

देखकर मन के दयार में

एक खाई सी हो जाती है

तभी बस फफक फफक कर

रोने को मन करता है

रोने को मन करता है

 

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