मैं भारतीय संविधान हूं….!
संकल्नकर्ता:- अर्जुन खुदशाह
परिचय:- बिलासपुर, छत्तीसगढ़
मैं भारत का संविधान हूं,
लालकिले से बोल रहा हूं,
मेरा अंतर्मन घायल है,
दुःख की गांठें खोल रहा हूं।।
मैं शक्ति का अमर गर्व हूं,
आजादी का विजय पर्व हूं।।
पहले राष्ट्रपति का गुण हूं,
बाबा साहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर का मन हूं।।
मैं बलिदानों का चन्दन हूं,
कर्त्तव्यों का अभिनन्दन हूं।।
लोकतंत्र उद्बोधन,
अधिकारों का संबोधन हूं।।
मैं आचरणों का लेखा हूं,
कानूनी लक्ष्मन रेखा हूं।।
कभी-कभी मैं रामायण हूं,
कभी-कभी गीता होता हूं।।
रावण वध पर हंस लेता हूं,
दुर्योधन हठ पर रोता हूं।।
मेरे वादे समता के हैं,
दीन दुखी से ममता के हैं।।
कोई भूखा नहीं रहेगा,
कोई आंसू नहीं बहेगा।।
मेरा मन क्रन्दन करता है,
जब कोई भूखा मरता है।।
मैं जब से आजाद हुआ हूं
और अधिक बर्बाद हुआ हूं।।
मैं ऊपर से हरा-भरा हूं,
संसद में सौ बार मरा हूं।।
मैं ऐसे धर्म को मानता हूं, जो मनुष्य को स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व सिखाता है……!
-डॉ. भीमराव अम्बेडकर