साड़ी, बिंदी, मेहंदी, औ कजरे की धार | newsforum
©सरस्वती साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
साड़ी बिंदी मेहंदी, औ कजरे की धार
नारी की शोभा बने, यह उत्तम श्रृंगार
साड़ी मर्यादा बने, घूंघट लेती डाल
चंद्रमा सम चमक रहे, बिंदी नारी भाल
मेहंदी प्रेम रूप है, रचती हाथों लाल
नारी शुभ श्रृंगार की, महिमा रही विशाल
सजना और संवरना, सहज करे श्रृंगार
नारी प्रिय को सज रही, अंतस भरी दुलार
सादगी औ तन्मयता, हिय में लेत उतार
तन-मन से वो मानवी, लाती प्रेम बहार