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होली हर रोज जलाता हूँ | ऑनलाइन बुलेटिन

©गुरुदीन वर्मा, आज़ाद

परिचय– गजनपुरा, बारां, राजस्थान.


 

अपनी इस कलम से, लिखता हूँ जो खत,,

उठ जाता हूँ नींद में ही, याद उसकी आते ही,,

सोचता हूँ यह एक ख्वाब है सिर्फ,

नहीं, यह हकीकत है सच,

और मैं लड़ता हूँ अपनी कल्पनाओं से,

फिर भूला देता हूँ मैं यह सब,

मानता हूँ सच में इसको मैं,

अपना एक पागलपन ही ।

 

वह इतना बेखबर तो नहीं,

कि मैं उसको नहीं चाहता,

वह यह भी जनता है,

कि मैं उसको प्यार करता हूँ,

उससे इकरार करता हूँ ,

और इंतजार करता हूँ,

कि वह भी इजहार करेगा,

मुझ पर एतबार करेगा।

 

मगर वह तो चाहता ही नहीं,

देखना एक पल भी मेरी तरफ,

कहना कोई दिल की बात मुझसे,

अपनी मजबूरी और शिकायत मुझसे,

चिढ़ाते हैं मुझको मेरे ये खत,

होकर मजबूर मैं भी इन खतों की,

होली हर रोज जलाता हूँ।


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