जय गनेश देवता…
©अशोक कुमार यादव
परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़.
तोर जय होवय गनेश देवता। करहूँ मैंय हा मान-मनौता।।
जिनगी मा सुख तैंय लाए हच। बिगड़े काम ला बनाए हच।।
बिकट दुख मैंय पावत रेहेंव। अपने-अपन नठावत रेहेंव।।
कुलूप छाए रहिसे अँधियारी। किरपा करके करे उजियारी।।
एक दिन करेंव परतिगिया। घर ले जाहूँ गनपति मोरिया।।
रोज पूजा-पाठ, सेवा करहूँ। तोर नाव ला मने-मन सुमरहूँ।।
तोला दाई-ददा जान के लाहूँ। मीठ लड्डू के भोग लगाहूँ।।
धोतिया, बंगाली तोला पहिराहूँ। तोर हाथ-पाँव ला दबाहूँ।।
तोर बंदना ला रात-दिन गाहूँ। नरियर अउ फूल चढ़हाहूँ।।
धूप,दीया अउ अगरबत्ती जलाहूँ। घेरी-बेरी आरती उतारहूँ।।
रहिबे मोर संग दस दिन ले। ओखर बाद चल देबे छोड़ के।।
मंगल, समरिद्धी, मोला देके। गियान के खूब बरसा करदे।।
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