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भारतीय संविधान मानवता, समता, स्वतंत्रता, सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय पर आधारित मानव सभ्यता का सबसे पवित्र ग्रंथ | Onlinebulletin.in

अंबेडकर, संविधान और प्रबुद्ध भारत का सपना विषय पर रायपुर में एक दिवसीय विचार गोष्ठी

रायपुर | #Onlinebulletin.in | #Onlinebulletin | हर भारतीय नागरिक के लिए 26 नवंबर का दिन बेहद खास होता है। यही वह दिन है जब देश की संविधान सभा ने मौजूदा संविधान को विधिवत रूप से अपनाया था। यह संविधान ही है जो हमें एक आजाद देश का आजाद नागरिक की भावना का एहसास कराता है। जहां संविधान के दिए मौलिक अधिकार हमारी ढाल बनकर हमें हमारा हक दिलाते हैं, तो वहीं इसमें दिए गए मौलिक कर्तव्यों में हमें हमारी जिम्मेदारियां भी याद दिलाते हैं। राजधानी रायपुर में 27 नवंबर 2021 की शाम 5 से 7 बजे तक छत्तीसगढ़ नागरिक संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा “अंबेडकर, संविधान और प्रबुद्ध भारत का सपना” विषय पर एक दिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन वायएमसीए प्रोग्राम सेंटर में किया गया।

 

छत्तीसगढ़ नागरिक संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा 72 वें संविधान दिवस के उपलक्ष्य में अंबेडकर, संविधान और प्रबुद्ध भारत का सपना विषय पर राजधानी रायपुर में 27 नवंबर 2021 की शाम 5 से 7 बजे तक वायएमसीए प्रोग्राम सेंटर रायपुर में आयोजित किया गया।

 

एक दिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन आमंत्रित अथितियों के गरिमामय उपस्थिति में हर्षोल्लास के साथ किया गया। कार्यक्रम का आगाज सभी समतावादी, मानवतावादी, सामाजिक न्याय के पुरौधा, महापुरुषों एवं संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी को श्रद्धा-सुमन अर्पित करके किया गया।

इस एकदिवसीय गोष्ठी में विषय की भूमिका उद्देश्य प्रस्तावना को प्रस्तुत करते हुए डॉ. गोल्डी एम. जॉर्ज ने कहा कि आज जब चारों ओर से पूंजीवादी, विषमतावादी विचारधारा नए रूप और कलेवर में हावी हो रही है तो समाज में समता, बंधुता और सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय के मूल्यों को प्रस्थापित करने के लिए भारतीय संविधान की प्रासंगिकता बेहद अहम हो जाती है।

इस संगोष्ठी में आयोजन समिति के विशेष आमंत्रण पर आमंत्रित अतिथि के रूप में स्वतंत्र रेलवे बहुजन कर्मचारी यूनियन दपूमरे रायपुर के मंडल सचिव श्री भोला चौधरी शामिल हुए। जिन्होंने प्रबुद्ध समाज निर्माण में भारतीय संविधान की प्रासंगिकता पर अपनी तथ्य पूर्ण बात रखते हुए कहा कि भारतीय संविधान मूलतः मानवता, समता, स्वतंत्रता और सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय पर आधारित मानव सभ्यता का सबसे पवित्र ग्रंथ है।

आज जातिवाद, भेद-भाव, छुआ-छूत, शोषण, उत्पीड़न, पाखंड, घृणा, अंधविश्वास, अन्याय से पीड़ित भरतीय समाज में संविधान मानव ग्रंथ के रुप में सभी समाज के लिए सार्वभौमिक रूप से अनुकरणीय, स्वीकार करने और उसके प्रावधानों को पालने करने योग्य है।

 

उन्होंने अपनी बातें रखते हुए आगे कहा कि एक ओर जहां भारत में आज बाजारवाद, पूंजीवाद और एक एक खास विचारधारा की मुहिम चल रही है तो ऐसे परिवेश में सभी समुदायों को सामाजिक शैक्षिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, अधिकारों को जनहित में संरक्षित करने के लिए संविधान निश्चित ही बहुत उपयोगी साबित होगी। संविधान यह अधिकार देता है कि सभी समुदायों को अपनी परंपरा धर्म संस्कृति का पालन करते हुए दूसरे समुदायों की संस्कृति, परम्पराओं, रीति-रिवाजों का सम्मान भी करनी चाहिए।

संविधान निःसंदेह आधुनिक लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में सभी समुदायों को विचार अभिव्यक्ति आवाज और स्वतंत्रता भी दी है, जिनकी आवाज भावना को सदियों से बलपूर्वक दबा दिया गया था। संविधान ने आधुनिक समय में बन्धुत्व, न्याय एवं बहुत हद तक समता समानता और न्याय के माहौल की निर्मिति भी की है।

इस विचार गोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में श्री विश्वास मेश्राम जी अपनी वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारत की प्राचीन श्रमण परम्परा ने भी अपने संघ में नियमावली बनाकर उसमें एक नवीन व्यवस्था स्थापित की। आधुनिक संविधान मुख्यतः कबीर रैदास और गुरु घासीदास जैसे संतों, महापुरुषों के मानवीय विचारों पर आधारित है जो वर्तमान समय में भी प्रासंगिक तो है ही साथ ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी दिखाई देती है।

आगे बताते चले कि इस एकदिवसीय गोष्ठी में रेस्पोंडेंट के रूप में डॉ. जितेंद्र प्रेमी सहायक प्राध्यापक पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर ने संविधान और प्रबुद्ध भारत पर अपनी बात रखते हुए कहा कि आज संविधान मात्र एक विधान ही नहीं है बल्कि मानव समाज को सभ्य सुसंस्कृत और विवेकवान बनाने की वैज्ञानिक, मौलिक व मानवीय पवित्र ग्रंथ भी है। उन्होंने जयभीम को मात्र एक अभिवादन का औपचारिक शब्द न मानते हुए सामाजिक, राजनैतिक क्रांति, आंदोलन की चेतना जगाने वाली स्वयं में एक जीवंत यूनिवर्सिटी और स्लोगन भी कहा।

 

डॉ. निस्तार कुजूर, सहायक प्राध्यापक पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर ने समता, स्वंतंत्रता, न्याय और प्रबुद्ध भारत के निर्माण में बहुजन समाज में वकीलों, विधिविशेषज्ञों, न्यायधीशों की महती आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज भारतीय समाज में न्यायिक चरित्र का अभाव है, इसी कारण बहुजनों को उनके वाजिब हक और अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है।

रायगढ़ से आये हुए श्री डिग्री प्रसाद ने सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक अधिकारों की प्राप्ति और सर्वांगीण सशक्तिकरण में स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका पर वृहद रूप से प्रकाश डाला।

 

इस गरिमामयी एकदिवसीय विचार गोष्ठी में मंच संचालन श्री संजीव खुदशाह जी, आमंत्रित अतिथियों का स्वागत अभिनंदन सुश्री पंचशीला श्यामकर जी एवं धन्यवाद ज्ञापन के कार्यक्रम की समापन की घोषणा श्री अखिलेश एडगर जी द्वारा किया गया।

इस कार्यक्रम में आयोजन समिति के सदस्य डॉ. गोल्डी एम जॉर्ज, श्री संजीव खुदशाह, सुश्री पंचशीला श्यामकर, डॉ संतोष बंजारे, डॉ.आरती पाठक, डॉ. निस्तार कुजूर, डॉ. जितेंद्र प्रेमी, श्री विश्वास मेश्राम, श्री भोला चौधरी, श्री अखिलेष एडगर, श्री सुनील गनवीर, श्री डिग्री प्रसाद, श्री शेखर नाग, श्री रवि बौद्ध, श्री रतन गोंडाने सहित लगभग 60 लोगों की गरिमामयी उपस्थिति रही।


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