हमर भाखा | Onlinebulletin.in

© महेतरु मधुकर (शिक्षक), पचेपेड़ी, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
नोट- (छत्तीसगढ़ी बोली में भाषा को भाखा कहा जाता है)
छत्तीसगढ़ी हमर महतारी भाखा ए,
अलग पहिचान हावय आज जी।
मधरस कस गुरतुर हमर भाखा,
गोठियाय म काके लाज जी……..
सुने म अड़बड़ नीक लागे,
दुख-पीरा के हरईया बानी।
साहित्य-संगीत के भंडार हे,
दया-मया के हेवय निशानी।।
सपना ल इही म संवारेन,
हमला तो हे बड़ गुमान जी….मधरस…
इही म उपजे बाढ़े हावन,
सुख-दुख जम्मो बितायेन।
रोये, हासेन, इही म गायेन,
इही म खुसहाली मनायेन।।
नोहय बोली देहाती एहर,
एखरो हे बड़ सम्मान जी……मधरस….
करमा-ददरिया म रचे बसे,
सुआ,जस, पंथी, संग खाप हे।
किस्सा हावय एखरो जुन्ना,
बेयाकरण के सुग्घर मिलाप हे।।
बिचार संग मितानी हे अड़बड़,
जतन कर जग बगराव जी….मधरस….