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पिता के बजाय नानी को बनाया 9 साल की बच्ची का अभिभावक, जानिए क्या है गार्जियनशिप एंड वार्ड्स एक्ट 1890, पढ़िए कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला | ऑनलाइन बुलेटिन

नई दिल्ली | [कोर्ट बुलेटिन] | एक नौ साल की बच्ची को उसके पिता के उग्र व्यवहार से बचाने के लिए अदालत ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आकाश जैन की अदालत ने बच्ची के बालिग होने तक उसकी नानी को कानूनी अभिभावक नियुक्त किया है। इस बीच बच्ची की शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य जिम्मेदारी का निर्णय नानी करेंगी। पिता के बुरे व्यवहार को नाबालिग बच्ची ने खुद न्यायिक अधिकारी के समक्ष बयां किया।

 

अदालत ने इस बच्ची के पिता के जीवित होते हुए भी उसकी नानी को कानूनी अभिभावक बनाया है। अदालत ने माना कि बच्ची के पिता की बदमिजाजी उसके भविष्य को प्रभावित कर रही है।

 

मां भी बच्ची के पिता के व्यवहार से थी पीड़ित

 

बच्ची की मां की कोविड-19 की दूसरी लहर में अप्रैल 2021 में मृत्यु हो गई थी। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक, बच्ची के पिता का अपनी पत्नी व बच्ची के साथ पहले से ही लापरवाह व उग्र व्यवहार रहा है। वह कई बार पत्नी व बच्ची के साथ मारपीट कर चुका था। इसकी शिकायत पुलिस को की गई थी। कोर्ट ने दस्तावेजों को अहम माना। बच्ची की नानी ने बताया कि पिता की बदसलूकी के कारण नातिन को जान का खतरा है।

 

सीडब्ल्यूसी ने भी की हिमायत

 

इस मामले में अदालत ने सीडब्ल्यूसी (बाल कल्याण समिति) ने बच्ची की काउंसलिंग व अन्य हालातों का जायजा लेने के बाद कहा कि बच्ची को देखभाल व सुरक्षा की जरूरत है, जोकि उसकी नानी ही दे सकती है। पिता का व्यवहार बेहद खराब है।

 

इसके अलावा सीडब्ल्यूसी ने दिल्ली बाल सुरक्षा समिति को कहा है कि वह बच्चों के लिए सरकार द्वारा लागू विभिन्न योजनाओं का लाभ भी इस बच्ची को दिलाए।

 

कानून के विशेष प्रावधान के तहत बनते हैं अभिभावक

 

गार्जियनशिप एंड वार्ड्स एक्ट 1890 के मुताबिक जैविक माता-पिता ही नाबालिग के अभिभावक बन सकते हैं, लेकिन कानून में विशेष प्रावधान के तरह ही नाबालिग बच्चे के मानसिक, शारीरिक व भावनात्मक हित को देखते हुए जैविक मां अथवा पिता के जीवित होते हुए भी अन्य रिश्तेदार को अभिभावक बनाया जा सकता है। ऐसा फैसला बहुत कम मामलों में आता है।

 

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