जिन्दगी…
©उषा श्रीवास, वत्स
हर पल हर दिन बदल रही जिन्दगी
मुझे हर हाल में जिन्दा रखने के लिए मेहरबान जिन्दगी।
गमों के दौर में खुशियों की राह तकती
पतझड़ में बसंत पाने की चाह रखती।
बनते बिगड़ते हालातों का सारा सच
इन सबको लेकर कहीं खुशियाँ और कहीं संजीदगी।।
जीने का हुनर कहां से लाती
खुश होते ही सारी खुशियाँ लुटाती।
जैसे एक ट्रेन उन दो पटरियों पर
दौड़ती
कही छाँव है कहीं धूप है और ही कई रूप है जिन्दगी।।
कई चेहरे इसमें छुपे हुए एक अजीब सी ये नकाब
कहीं छीन लेती है हर खुशी बेहिसाब।
कहीं आंसुओं की दास्तां कहीं मुस्कुराहटों का बयां
कहीं हसीं ख्वाब कहीं मेहरबान लाजवाब जिन्दगी।।
गीली मिट्टी की सौंधी खुशबू से महक जाती
यादों के खजाने से निकल-निकल आती।
दो वक्त की रोटी की मोहताज़ और बिदांश अंदाज
कभी हँसाती है तो कभी रूलाती है जिन्दगी।।
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