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कैसे इकरार उनका…

©प्रा.गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र


 

 

कैसे इकरार उनका यहां इनकार में बदल गया,

और खिला हुआ चमन ये फिर से उजड़ गया।

 

वो कौन-सी आंधी थी,जो उनका हौसला चीर गई,

इकरार करती हुई निगाहें भी,हमसे ही मुंह में मोड़ गई।

 

इकरार करना ही है तो,जिंदगी भी संवर दीजिए,

सारा ज़माना दुश्मन है,पहले ज़रा तुम सोच लीजिए।

 

खुशनसीब है वो लोग,जिन्हें यहां पे सच्चा प्यार मिलता है,

किसी किसी के तक़दीर में यहां प्यार का फूल खिलता है।

 

इज़हार जब मिला उनका तो,दुश्मन हुआ ये सारा ज़माना,

उसी कोहिनूर के लिए ही,जो ये ज़माना भी था बहोत दिवाना।

 

बदल न देना कभी तुम,अपना ये दिया हुआ प्यारा इज़हार,

बड़े नशीब से मिलता है,किसी किसीको ये प्यारा उपहार।

 

इज़हार और इंकार का खेल बना दिया उसी ने यहां पर,

हवाएं जो इस जमाने की,शायद छाई थी उसी निगाहों पर।

 

कैसे इकरार उनका यहां इनकार में बदल गया,

बेवफ़ाई का ये मंज़र इस जहां में देखो कैसे खिल गया।

 

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