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एक नया सूरज बनकर | ऑनलाइन बुलेटिन

©गायकवाड विलास

परिचय- मिलिंद महाविद्यालय लातूर, महाराष्ट्र


 

सिर्फ बाल दिवस मनाने से इस जहां में,

नहीं होगा कोई भी अच्छा बदलाव यहां पर।

उज्जवल भविष्य उनका युंही नहीं बदलेगा यहां,

उन्हीं के लिए हमें भी चलना होगा सच्ची राहों पर।

 

सिर्फ आंगन में मिट्टी कि ढेर लगाने से,

कभी बनते नहीं उस मिट्टी के बर्तन सुन्दर।

उसी मिट्टी की तरह होते है ये सभी नन्हें बच्चे भी,

उन्हीं के लिए जरुरी है निर्मल नीतियां और संस्कार।

 

आओ सभी करते है हम आज नया प्रण,

सभी बच्चे होंगे खुशहाल इस धरतीपर।

जैसे फूल खिलते है चमन में निरनिराले,

उसी चमन की तरह बनायेंगे हम ये नया संसार।

 

सीख उन्हीं को देंगे हम समता और मानवता की,

वही सीख उन्हीं बच्चों को सच्चा इन्सान बनायेगी।

तभी आयेगा नया बदलाव इस सारे संसार में,

और सभी दिशाओं में यहां पर अमन और शांति छायेगी।

 

यहां कब तक पढ़ाओगे तुम ऊंच-नीच और भेदभाव का पाठ,

यही विषमता एक दिन विनाश का ज़हर बन जायेगी।

प्रेम ही है इस संसार में सबसे श्रेष्ठ यहां पर,

सिर्फ यही सीख सारे संसार में सुखों की बहार लायेगी।

 

सिर्फ बाल दिवस मनाने से इस जहां में,

नहीं होगा कभी कोई भी अच्छा बदलाव यहां पर।

इसीलिए अच्छी नीतियों का पाठ पढ़ाओ तुम सभी यहां,

तभी हर बच्चा जलायेगा अंधकार,एक नया सूरज बनकर।

 

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