त्याग और साहस से भरी होती नारी | ऑनलाइन बुलेटिन
©रामकेश एम यादव
परिचय– मुंबई, महाराष्ट्र
त्याग और साहस से भरी देखो होती नारी,
बुरा वक्त आते लक्ष्मीबाई बन जाती है।
रहती है घिरी कितनी झंझावातों से वो,
ऐन मौके पर प्रत्यंचा -सी तन जाती है।
नारी को बेचारी कहना भूल जाओ सभी,
देखो हर क्षेत्र में वो लोहा मनवाती है।
स्पेस की दुनिया में बनाई पहचान आज,
फाइटर विमान बड़े स्वाभिमान से उड़ाती है।
सृष्टि नहीं नारी बिना, है जीवन की मूल वो,
गिद्धों की नजर देखो फिर भी मँडराती है।
आता जब बुरा समय बन जाती दुर्गा-काली,
सीधे- सीधे यम से भी देखो टकराती है।
टूटती उम्मींद में आशा की किरण दिखती,
अपनी फटी एड़ियों को साड़ी से छिपाती है।
डालती है बच्चों में संस्कार कूट- कूटकर,
मानों घर-द्वार का वो तीरथ बन जाती है।
जुल्म सहकर भी वो देती है सभी का साथ,
पूरे घर- बार का वो बोझ भी उठाती है।
मानों कोई पहनी हो काँटों से भरा ताज,
सूरज की पीठ पर वो रोटियाँ पकाती है।