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अफसोस | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©राजेश कुमार बौद्ध

परिचय-   गोरखपुर, उत्तर प्रदेश


 

अफसोस नहीं है

कि हम उनका

हिस्सा नहीं बन सके

हमें न उनकी उन्नति से अफसोस हैं,

हमें तो अफसोस है

अपनी बिरादरी से

अपने समाज के पढ़े लिखे लोगों से

जो एक बरगद की पेड़

की तरह होते हुए भी

अलग-अलग बंट जातें हैं।

कोई आसमान को छू लेता है

तो कोई जमीन के अंदर

दबा दिये जाते हैं

और बाकी रहे वे ?

कुछ उन लोगों के

तलवे चाटने को बेताब

तो कुछ

गन्दे नाली के रेगते कीड़े

की तरह जिन्दगी जीने को मजबूर

हमें अफसोस हमसे है

कुछ तुमसे है,

कुछ समाजसेवियों से है

तो

कुछ राजनीति करने वालों से है।……….

 

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