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बाबा साहेब और वर्तमान युग की नारी | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©अरविन्द कालमा

परिचय– जालोर, राजस्थान.


 

शोषितों की हालत बाबा साहेब से पहले बेहद दयनीय थी उन्हें कोई भी अधिकार नहीं था। जीने तक का भी नहीं तो सोचने का विषय है कि स्त्री की हालत उस समय क्या रही होगी। बाबा साहेब न होते तो जीवन अंधकारमय होता और हम खुद को कोसते की हमारा जन्म ही क्यों हुआ! न पेटभर भोजन मिलता था न तन पर कपड़े थे पशुओं से भी बदतर जीवन था। सदियों की गुलामी से मुक्ति हमें बाबा साहेब ने दिलवाई। छोटी छोटी बच्चियों को देवदासी बना दिया जाता था, उनको सिर्फ और सिर्फ उपभोग की वस्तु समझा जाता था, नारकीय जीवन था जिससे उनको आजाद किया बाबा साहेब ने। वर्तमान दौर की नारियां उस मसीहा का नाम तक लेने से कतराती हैं अधिकतर नारियां तो उन्हें जानती तक नहीं।

 

टिकटोक बेन हुआ तो इंस्टाग्राम पर रिल्स बनाने का ट्रेड चलने लगा। लड़कियां फॉलोवर बढ़ाने के चक्कर में सारी हदें पार करती हुई रिल्स बना रही हैं। बात बात पर इज्जत जाने की बात करने वाली नारी शक्ति खुद की इज्जत सोशल मीडिया पर उछाल रही है। नारी के प्रति बढ़ते अपराध को लेकर कहीं न कहीं इसकी जिम्मेदार नारी खुद है। इंस्टाग्राम पर किसके कितने फॉलोवर्स है, ये याद रखने वाली नारी भारतीय संविधान में प्रदत्त अधिकारों से अनभिज्ञ है।

 

धार्मिक आडम्बरों में तल्लीन नारी, अपने अधिकारों से वंचित नारी हर घर में मिल जायेगी पर संवैधानिक अधिकारों से युक्त नारी का अपवाद भर मिलेगा। सवाल ये है कि आखिर इसकी वजह क्या है? भारतीय नारी अपने पथ पर आगे तो बढ़ रही है पर परम्परावादी कुप्रथाओं को भी साथ लेकर चल रही है। इसके लिए टीवी,सोशल मीडिया भी कहीं ना कहीं जिम्मेदार हैं क्योंकि सीरियलों,मूवीज और वेब सीरीज वगैरह में टीआरपी के चक्कर में धार्मिक कर्मकांड हद से ज्यादा दिखाए जाते हैं। महिलाएं उन्हें सत्य मानकर फॉलो करती हैं, उनका चाहे कोई भी औचित्य न निकलता हो पर फिर भी उनकी पंसदीदा एक्ट्रेस जो अपनी रियल लाइफ में आडम्बरों को बढ़ावा दे रही हैं तो वो इसे अपनी रियल लाइफ में अपना लेती हैं जितनी ज्यादा पढ़ी लिखी होंगी उतना ज्यादा पाखण्ड में भाग लेंगी।

 

सोशल मीडिया पर नारी आवारा लड़कों के गन्दे कमेंट झेलती है या फिर वहीं बहस करती नज़र आती है फिर डिप्रेशन का शिकार होती हैं जिसके परिणामस्वरूप आत्महत्या,मानसिक तनाव जैसी विकट परिस्थितियां पैदा होनी तय हैं। इस तरह का सोशल मीडिया का नशा खुद के लिये घातक तो है ही साथ ही आने वाली पीढ़ी के लिए भी खतरनाक साबित होगा और हो रहा है। आगामी पीढ़ी उनके नक्शे कदम पर चलने को बेताब है।

 

महिलाओं को जरूरत है बाबा साहेब को पढ़ने की उन्हें जानने की, अपने मुक्तिदाता को पहचाने की। हिन्दू कोड बिल जिस नारी ने पढ़ लिया वह बाबा साहेब के प्रति कृतज्ञ हो गई। हमें महिलाओं को सिर्फ चार दीवारी में कैद रखकर पाखण्ड करने तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि उन्हें जागरूक करना हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए कि उन्हें उनके हक अधिकार बताएं और उन्हें अपने असली मसीहा की पहचान करवाएं। संविधान में प्रदत्त अधिकारों से उन्हें अवगत करवाया जाना अनिवार्य है तब जाकर नारी केवल अबला बनकर न रहेगी बल्कि शोषण करने वाले का तबला बना देगी। उस महामानव को सादर नमन जिसने अपना सब कुछ कुर्बान कर हमारा दौर सँवारा है।

 

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