बाबू जी (पिता जी) | ऑनलाइन बुलेटिन
©जलेश्वरी गेंदले
परिचय– शिक्षिका, पथरिया, मुंगेली, छत्तीसगढ़
बाबू जी
एक छांव है
जीने की राह है
पिता एक सारा संसार है
जब भी चलना हुआ
एक उंगली ही काफी थी
जो मुझे संभाल कर चला दे
बाबू जी
जब मांगी मन चाही चीज
भले ही क्यों न रहे
एक सस्ती मंहगी सीख
पाने की राह न हो
कहा आज नहीं कल पक्का
मन को न होने दिया कभी दुखी
बाबू जी
तेरे आंगन में मिला मुझे
वो बेफिक्री से भरी तमाम खुशियां
जब जब रोई लोरी गा चुप कराया
बाबू जी की रानी बिटिया मैं कहाई
बाबू जी ये रीत
भी बड़ी बेरहम है
अपनी रानी बिटिया को
अपने से दूर भेज दिए
क्यूं कर विदाई
वो सारी बातें आज बहुत ही याद आई
जब रूठती हूं
मुझे मनाने आपको जब
पास मैं अपने न पायी
बाबू जी
आज बहुत मन हो रहा है कि जी भर रोऊं
आओ आज सुना दे लोरी
जो सुन हंसी से मन मारे हिलोरे
खुशी से सारा जहां लगे झूमने
बाबू जी आकर जो आप मेरे माथा चूम ले …
बाबू जी
मुझे गर्व है कि आप मेरा
दाखिला स्कूल में कराए
बेटा बेटी में बिना भेद किए
कभी महसूस नहीं होने दिए
बेटा धन है और बेटी पराए
दोनों को जो आपने समानता
का पाठ पढ़ाए
जो आज मेरा मान है बढ़ाए
बाबू जी
आपको मेरा सादर जय भीम
मिस यू बाबू जी
परिनिर्वाण दिवस पर शत-शत नमन