दूल्हा बिकता है | ऑनलाइन बुलेटिन
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई
परिचय– बिहार शरीफ़, नालंदा में जन्मी और पली-बढ़ी लेकिन मुंबई में निवास हैं, शिक्षा– एमसीए, एमबीए, आईटी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर, राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का नियमित प्रकाशन.
मंडी सजी है, हर दूल्हे का अपना दाम,
सौदा निबटे तो अच्छा वरना काम तमाम।
दूल्हा गोरा भी है, काला भी है, लम्बा भी है, नाटा भी है।
इंजीनियर भी डॉक्टर भी, बैंक कर्मचारी, कंडक्टर भी है।
गारन्टी नहीं है माल की, कौन, कितना चलेगा,
निभे तो सात जन्म, वरना दो दिन में पत्ता कटेगा।
लाखों से ऊपर सब ने अपना दाम लगाया।
लड़की गोरी और हो पैसेवाली, ऐसा बताया ।
बिक जाए लड़की वाले तो भी कोई ग़म नहीं,
दूल्हा है साहेब, एक रुपया भी दाम कम नहीं।
जवान ही नहीं, बूढ़ा भी लाइन में खड़ा है।
एक पैर क़ब्र में, दूजा बैसाखी पे पड़ा है।
मामला यहां का लगता बड़ा साफ़,
ख़रीदेगा वही जिसकी जितनी औक़ात।
दूल्हा बिकता है, बोलो ख़रीदोगे।
दूल्हा बिकता है, बोलो ख़रीदोगे।