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भागीरथी गंगा | ऑनलाइन बुलेटिन

©उषा श्रीवास, वत्स

परिचय- बिलासपुर, छत्तीसगढ़.


 

शिव की जटा में वास करती

पापियों का नाश हरती है।

पुण्य सलिला पतित पावनी

वसुधा को शीतल करती है।।

 

पतित पावनी भागीरथी गंगा

भरती झोली खाली है।

मिले नवजीवन इस सृष्टि को

अद्भूत वैभवशाली है।।

 

कितना पावन कितना निर्मल

गंगा त्रिपथ गामिनी है।

अपरंपार है माँ की महिमा

धोती पाप धरा के पाप नाशिनी है।।

 

देवनदी सागर पुत्री कल्याणी को

वाल्मीकि और तुलसी ने गाया है।

श्रीमुख की अमृतवाणी ध्रुवनंदा के

राम कहानी को पढ़ सबने हर्षाया है।।

 

कल-कल की धुन सहेजे

धाराएं बहती जाती है।

अमृतपान करो गीता का तो

लहरें कुछ गुनगुन गाती है।।

 

तारण हारे हरि की कृपा से

हरिद्वार प्रयाग काशी है।

जो भी जाये शरण गंगा के

मुक्ति पाते अविनाशी है।।

 

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