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गुलशन उजड़ गया | Newsforum

©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़  

परिचय- गाइडर जय भारत इंग्लिश मीडियम हाई स्कूल, जिला उपाध्यक्ष- अखिल भारतीय हिंदी महासभा.


 

 

बैठ पेड़ की छाया में, मस्त मगन हम रहते थे।

कितना सुन्दर दृश्य था, जब प्रकृति से बातें करते थे।।

 

खेलते रहते पेड़ों के नीचे, झूलते उनकी टहनियों में।

मन को कितना सुकून मिलता, चलती हवा जब गर्मियों में।।

 

कोयल की मीठी बोली सुनते, और कौंए की कांव वहां।

गुलशन उजड़ गया देखो, अब वो प्यारा गांव कहां।।

चिड़िया चूं-चूं गान सुनाकर, सबको सुबह जगाती थी।

रंग बिरंगी तितली रानी भी, मन को बहुत लुभाती थी।।

 

सुरभित, पुलकित, कलियां खिलतीं, मंद सुगंध पवन बहते थे।

देख मनोरम इस दृश्य को, सब मोर बनकर झूम उठते थे।।

 

जल में फुदकती रहती मछली, अब वो पुराना ताल कहां।

गुलशन उजड़ गया देखो, दिखते अब इमारत जाल यहां।।

 

नदियों-सड़कों के किनारे, पेड़ों की सुंदर छाया थी।

प्रकृति की गोद में रहकर, हमारी तंदरुस्त काया थी।।

 

सांस लेने को शुद्ध हवा, हमको आज नसीब नहीं।

गुलशन उजड़ गया देखो, रोता बैठा गरीब कहीं।।

 

स्वार्थी बन सब वृक्ष काटे, खड़े किए मशीन यहां।

गुलशन उजड़ गया देखो, अब हरी भरी जमीन कहां।।

 


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