जालिम | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©मजीदबेग मुगल “शहज़ाद”
परिचय- वर्धा, महाराष्ट्र
खुद को और से कितना अच्छा दिखाने लगे।
ऐब को झांकने और शरिफ बताने लगे ।।
सिंहासी चालो का सिल सिला जारी रहेगा ।
चहरे पर लगी काली कालिक हटाने लगे ।।
जहेर उगलने वाले उतार देते बहुत ।
दिखावे के लिये मरीजों को बचाने लगे ।।
अच्छाईयां उनकी गिनाने से फायदा ।
मासूमों को भी वो आजकल सताने लगे ।।
अहसान उनका भुलाये भला कोई कैसा।
जबरन हर किसी पे अहसान जताने लगे ।।
बस्ती सारी उजड़ी अभी वीरानी छाई ।
जालिम अपने रौशन दान वो सजाने लगे ।।
हमदर्दी प्यार न ख़ुलूस की बातकर भला।
मसीहा बने बेगुनाह के सर कटाने लगे ।।
‘शहज़ाद ‘ लाख बदले जमाना तो क्या हो ।
वो जालिम बेगुनाह पे जुल्म जताने लगे ।।