परिवार | Newsforum

©वंदिता शर्मा, शिक्षिका, मुंगेली, छत्तीसगढ़
परिवार को बनते और बिगड़ते देखा,
इन रिश्तों को अपना रंग बदलते देखा।
परिवार को मजबूती से पकड़कर चले
तो रिश्तों में मजबूती बनते देखे।
टूटते परिवारों को
मैंने बुजुर्गों की सूनी आँखों में पिघलते देखा।
पिता का आदर, माता का त्याग से परिवार को बढ़ते देखा,।
बुढ़ापे में इस परिवार का बोझ फिसलते देखा।
हालांकि मैंने परिवार को
क़र्ज़ चढ़ते देखा,
जायदाद पर परिवार को बेदख़ल होते देखा।
सात जन्मों का साथ निभाने वाले परिवारों को देखा,
धरती पर्वत सूरज चाँद,
इनसे भी रिश्ते जुड़ते देखा,
अहंकार को इस परिवार का दोहन करते हुए देखा।
सबसे जुड़ता है परिवार जब आप में हो सामंजस्य।
पर आपसी मनमुटाव में टिकता नहीं परिवार
दो दिन की है जिन्दगी
आपस में कर लो प्यार
समेट के रख लो ये परिवार
आज के इस महामारी में
परिवार को अलग होते
देखा है।
वो दिन कब आए,
जब सब मिलकर पुनः एक हो परिवार।
सुखी जीवन जीने का कर्णधार है परिवार।