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मृतात्मा | ऑनलाइन बुलेटिन

©अशोक कुमार यादव

परिचय- मुंगेली, छत्तीसगढ़.


 

 

जन्म लिया था मानव बन कर इस पावन भू-भाग।

कब दानव बना पता नहीं चला उगलने लगा आग।।

मोह में फंसा था जीवन भर, लिया ना प्रभु का नाम।

अपने लिए, अपनों के लिए करता रहा ताउम्र काम।।

 

गरीबों से लेता था धन, अमीरों का किया काम मुफ्त।

कहता सभी से बताना नहीं किसी को, रखना गुप्त।।

देखकर पहनावा उनका निर्धनों को बिठाता जमीन।

जब आता कोई धनवान, उठ खड़ा होता आसीन।।

 

भिक्षु को कभी ना दान दिया ना किया समाज सेवा।

भक्ति की ना धर्म के मार्ग पर चला, खुद खाता मेवा।।

ईश्वर समान माता-पिता को भेज दिया वृद्धा आश्रम।

माया और मांस-मन्दिरा में लिप्त पाल बैठा था भ्रम।।

 

भटक रहा हूं स्वर्ग और नर्क में रूप लिए श्वेत छाया।

निर्मल, पुण्य वाले मिट्टी में दफन है मेरी हाड़ काया।।

जला था आजीवन दूसरों से, गुरुर अग्नि की लपटों में।

धवल धुआं उड़ गया गगन, राख बन कैद हूं मटकों में।।

 

बुढ़ापा में था कुटुंब से दूर, बेटा कर रहा पितृ विसर्जन।

फिर मुझे मानव जन्म देकर भेजना ताकि करूं सर्जन।।

अंतिम समय में मेरा साथ दिया ना जर, जमीन, जोरू।

बीते बात को याद करके नाम परमात्मा का पुकारूं।।

 

 

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