भिड़ने से तू न डर | ऑनलाइन बुलेटिन
©देवप्रसाद पात्रे
परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़
इम्तिहाँ का है डगर, बढ़ने से तू न डर
जीतने की जिद कर, भिड़ने से तू न डर
मुश्किलों का दौर है यहाँ, हौसलों से जीतेगा जहाँ
सागर से सीखकर, जीवन को दे लहर
जीतने की जिद कर, भिड़ने से तू न डर
ये चांद सूरज और सितारे, जीवन सीख हैं हमारे
तारों को खींचकर, ले आओ जमीं पर
जीतने की जिद कर, भिड़ने से तू न डर
खुला गगन होके मगन, जी भर के उड़ ले यहाँ
आत्मबल से बढ़, समता का अवसर
जीतने की जिद कर, भिड़ने से तू न डर