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दुर्गा दाई | newsforum

©राजेश कुमार मधुकर (शिक्षक), कोरबा, छत्तीसगढ़ 


 

दुर्गा दाई तैहर आये नउठिन रूप धरके

पहली दिन तै आथच दाई शैलपुत्री बनके

पहाड़ के तै बेटी कहाये आथच बइला म चढ़के

हाथ म त्रिशूल आउ कमल फूल ल धरके

दुर्गा दाई तैहर आये नउठिन रूप धरके

 

दूसर दिन तै आथच दाई ब्रम्ह्चारिणी बनके

तपस्या के तैहर देवी आथच बनके

हाथ म कमण्डल आउ माला ल धरके

दुर्गा दाई तैहर आये नउठिन रूप धरके

 

तीसर दिन तै आथच दाई चंद्रघंटा बनके

शांति आउ कलियानकारी रूप धरके

माथा म आधा चंदा आउ सोनहा रूप धरके

दुर्गा दाई तैहर आये नउठिन रूप धरके

 

चउथा दिन तै आथच दाई कुष्मांडा बनके

चेहरा म लाये सुघ्घर मुस्कान ल धरके

सबला हँसना मुस्कुराना सिखाये अपन बस म करके

दुर्गा दाई तैहर आये नउठिन रूप धरके

 

पाचवाँ दिन तै आथच दाई स्कंदमाता बनके

भगवान स्कन्द के दाई कहाये ओला जनके

पद्मासना देवी बने कमल फूल म चढ़के

दुर्गा दाई तैहर आये नउठिन रूप धरके

 

छठवाँ दिन तै आथच दाई कात्यायनी बनके

ऋषि कात्यायन घर जनम लेये बेटी बनके

योग साधना सिखाये,फलदायनी देवी बनके

दुर्गा दाई तैहर आये नउठिन रूप धरके

 

सातवाँ दिन तै आथच दाई कालरात्रि बनके

सुघ्घर रूप ल छोडके आये भयानक रूप धरके

दुष्ट मन ल नाश करें अंतस के डर ल दूर करके

दुर्गा दाई तैहर आये नउठिन रूप धरके

 

आठवाँ दिन तै आथच दाई महागौरी बनके

सक्ति देवईया आउ फल देवईया बनके

सबो भक्त मन के पाप ल दूर करईया बनके

दुर्गा दाई तैहर आये नउठिन रूप धरके

 

नवमी के दिन तै आथच दाई सिद्धिदात्री बनके

सब कोई के सिद्धि ल पुरा करईया बनके

नवों रूप के आखरी रूप सिद्धिदात्री बनके

दुर्गा दाई तैहर आये नउठिन रूप धरके ….


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