कलयुगी अभिमन्यु…
©पद्म मुख पंडा
परिचय- रायगढ़, छत्तीसगढ़
सांसारिकता के चक्रव्यूह में,
करके प्रवेश, युद्धरत अभिमन्यु की तरह,
घिरा हुआ हूं, स्थिति है बड़ी भयावह!
प्रयत्न कर रहा हूं, चक्रव्यूह भेदकर,
दुर्दम भय, द्वेष, अहंकार का सिर विच्छेद कर,
निकल कर दूर किसी शान्त पहाड़ी पर,
होकर ध्यानस्थ बुद्धमय हो जाऊं!
न हो बुबुक्षा और न ही कोई तृषा,
बदल डालूं, जीवन की सम्पूर्ण दिशा!
पर, उक्त शत्रु और महाबली,
मिलते हैं, मुझे कूंचे कूंचे, गली गली!
कोई टांग खींचता है तो कोई हाथ,
मिले हुए हैं, ऐसे लोग साथ साथ!
चाहता हूं, उठाकर झूठ का पर्दा,
निःशेष कर डालूं, अविवेक का गर्दा!
पर, चाहकर भी, कुछ नहीं, कर सकता हूं,
सिर्फ़ दलित, शोषित, पीड़ित की ओर तकता हूं!
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