फाग राग …

©उषा श्रीवास, वत्स
बैरभाव को भगाकर मिल गए दिल से दिल के तार, तन भीगा मन भीगा गोरी का कब से खड़ी करे इंतजार |
बाँधते प्यार की डोरी सजा है सुंदर स्वर का तार,
तिरछे नैनों से बोले गोरी कभी तो होंगे नैनाचार।
रंग लगायें एक दूजे को मारते पिचकारी की धार, वो बरसाने की छोरी ऐसे करती सोच विचार ।
फाग राग मन मेरो भाए हम तुम गाएँ सूर मल्हार, चंग बजे तो मन हरषाएं मीठे बोलों की भरमार।
प्रीति प्रणय के भाव जगाकर दरश दिखा दे कृष्ण मुरार, मन ही मन मनभावन से बोली आ गया रंगों का त्यौहार।
मस्त महीना फागुन का हुआ है आज गुलजार, प्यार की धारा बनेगी होली आज हैं यारा होली का त्यौहार।
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