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हां,मैं औरत हूं ….

©गायकवाड विलास

परिचय- लातूर, महाराष्ट्र


 

पूरे विश्व की जननी हां,मैं औरत हूं,

सदियों से सबकुछ चुपचाप सहती आयी हूं।

बीत गए कितने साल,फिर भी हूं मैं बेहाल,

ऐसे नामर्दों को मर्द कैसे कहते है यही मैं सोच रही हूं।

 

मां,बहन,बेटी और बीवी भी होती है एक औरत,

घर-घर में वही है एक ममता भरी मूरत।

फिर भी समझ नहीं पाया ये जमाना आज तक उसी नारी को,

इसीलिए आज भी मैं कहीं न कहीं पर बेवजह जल रही हूं।

 

मेरे बिना नहीं है कोई भी हंसता हुआ घर इस संसार में,

मैं ही हर घर में यहां पर ज्योति बनके जलती हूं।

हर घड़ी पलकों में छुपाकर अपने अश्कों को,

बस,आज भी मैं इस संसार में ऐसे ही हंस रही हूं।

 

अपने घर में भी नहीं मिलता मान सम्मान मुझे,

बाहर तो जगह-जगह पर यहां खतरों की आहट है।

ऐसे जमाने से क्यां करूं उम्मीद मैं अपनेपन की,

यहां तो अपने भी कभी अपनापन जताते नहीं है।

 

खिलती कलियां भी देखी नहीं जाती इस ज़माने से,

वो भी यहां खिलने से पहले ही मुरझा जाती है।

औरतों को देवियों का दर्जा देकर ढिंढोरा पीटने वाला ये जमाना,

उसी औरत को ही अपनी हवस की नज़र से यहां देखता है।

 

पूरे विश्व की जननी हां, मैं औरत हूं,

मां,बहन,बेटी और बीवी सभी मेरे ही रूप है।

मान सन्मान करना सीखो उसी औरतों का तुम सभी,

क्योंकि उसी औरत के बिना हर घर यहां पर जैसे एक श्मशान है।

 

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