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मैं अम्बेडकरवादी हो गया हूँ? | ऑनलाइन बुलेटिन

©अनिल बिड़लान

परिचय : कुरूक्षेत्र, हरियाणा.


 

 

ईश्वर से भी बड़ा इन्हें मानता हूँ

दिन रात खूब वंदना करता हूँ

बाबा साहेब का जन्मोत्सव मैं भी

गाजे बाजे के साथ मनाता हूँ

बस, शिक्षा बिसर गया हूँ उनकी

परन्तु इनको जानता हूँ मानता हूँ

देखो मैं कितना सबल हो गया हूँ?

क्या मैं अम्बेडकरवादी हो गया हूँ?

 

कभी नारों में कोई कमी नहीं छोड़ी

जय भीम का जयकारा लगाता हूँ

मोह माया छोड़ सका ना घर की

समाज सुधार की बातें रोज करता हूँ

नारी को मानता चारदीवारी का श्रृंगार

मगर अम्बेडकरवादी खुद को मानता हूँ

देखो मैं कितना सबल हो गया हूँ?

क्या मैं अम्बेडकरवादी हो गया हूँ?

 

बना लिए हैं संगठन बहुत से मैंने

मगर मंच कभी साझा नहीं करता हूँ

है हिम्मत जो बिन पूछे आगे बढ़ जाए

झट टांग पकड़ कर पीछे खींच लेता हूँ

यूँ तो संसद में भी पहुँच गया हूँ मैं भी

पर आकाओं के आगे जुबान नहीं खोलता हूँ

देखो मैं कितना सबल हो गया हूँ?

क्या मैं अम्बेडकरवादी हो गया हूँ?

 

समाज जले मरे दिन-रात मैं क्या करूं

मेरे रूतबे से मैं समझौता नहीं करता हूँ

ना जाने कितनी गर्दनों पर कदम रखे हैं

मैं अपनों के खून का हिसाब नहीं करता हूँ

आ जाया करो जंयती पर चंदा लेने घर पर

बाबा साहब के नाम पर मैं मना थोड़े करता हूँ

देखो मैं कितना सबल हो गया हूँ?

क्या मैं अम्बेडकरवादी हो गया हूँ?


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