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उसी अमृत को मैंने | ऑनलाइन बुलेटिन

©गायकवाड विलास 

परिचय- लातूर, महाराष्ट्र


 

जब बदल गया वो धूप का मौसम,

तब बहने लगी ठंडी-ठंडी हवाएं ।

आसमां में चमकने लगी बिजलियां,

तभी मैंने जलधर को घिरते देखा है।

 

घनघोर छाई काली काली घटाएं,

चहुंओर छाया दिखता अंधेरा है।

रिमझिम बरसती बारिश की बूंदें,

तभी मैंने जलधर को घिरते देखा है।

 

महक उठी धरती कण-कण से ,

जल जल हुई भूमि,भर गई दरारें।

आवाज़ करने लगे,ऊंचे पहाड़ों से गिरते झरने,

तभी मैंने जलधर को घिरते देखा है।

 

सजी धरती हरियाली की चादर ओढ़कर,

बागों में खिल गए रंग-बिरंगे फूल।

तितलियां झुमने लगी फूलों के संग संग,

तभी मैंने जलधर को घिरते देखा है।

 

जब आता है वर्षा ऋतु का मौसम,

तभी चहुंओर खुशियों की लहर छा जाती हैं।

पानी ही सारी सजीव सृष्टी के लिए बना है अमृत,

उसी अमृत को मैंने जलधर से गिरते देखा है।

 

 

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