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वृद्धाश्रम का दर्द | ऑनलाइन बुलेटिन

©अरुणा अग्रवाल

परिचय- लोरमी, मुंगेली, छत्तीसगढ़.


 

लघुकथा

 

आज हमारा देश प्रगति तो किया है निःसंदेह, परन्तु यह भी शत प्रतिशत विचारणीय है कि बहुत सारी समस्याओं से भी जूझ रहा हैऔर उनमें से एक है “वृद्धाश्रम का दर्द “।पाश्चात्य का आन्धा अनुकरण उसकी देन कहा जाऐ तो शायद अतिश्योक्ति न होगा। अंग्रेजी भाषा,जीवन-शैली,नैतिक – आध्यात्मिक पतन इसके मुख्य चंद बिन्दु हैं।

 

नतिजातन जिन माता-पिता ने अपनी सारी प्यार,अरमान,दौलत,मेहनत उम्र बच्चों की खुशी में न्योछावर कर दी, उनका वृद्धावस्था, वृद्धाश्रम में कालकोठरी की घुटन, टीस और बेहद शर्मसार जिन्दगी जीने में मजबूर कर दिया है। न तो वे मर पा रहे हैं और गर जीवित भी हैं तो जिन्दा लाश की तरह। उससे बड़ी बिडम्बना हो ही नहीं सकती। आज जिस उम्र में वे पोता-पोती को लोरी सुनाने की तमन्ना रखते थे,बुरी हालत,मानसिक तनाव,शारीरिक अस्वस्थता से गुजरने पे मजबूर कर दिया है।

 

इससे निजात पाने के लिऐ,जन जागरण,की नितान्त आवश्यकता है।चूंकि केवल सरकार का प्रयास काफी नहीं है। शिक्षा,शिक्षक,शिक्षा-प्रणाली अपितु जन-जागृति की भी प्राथमिकतायें साकार हो। चूंकि “एक एकेला हार जाऐगा साथी,हाँथ बढ़ाना। व्यक्ति से समष्टि तक के मिलाजुला प्रयास से फिर से सतयुग आऐगा।

 

फिर से लव,कुश,ध्रुव,प्रह्लाद,श्रवणकुमार और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एकैक जननी के कोख से जन्म लेंगे और “वृद्धाश्रम की जगह गुरूकुल स्थापित होगा। वहां ओंकार ध्वनि, गायत्री मंन्त्र, वैदिक रीति-रिवाजों का नित्य नूतन, चिर-पुरातन सभ्यता, संस्कृति की अरुणिमा चारों दिशा में प्रकाशवान होगी।

 

सत्य, अहिंसा, अपरिहार्य का बीज अंकुरित होगा और नाज़ से कहगें कि हम भारतीय हैं “सोने की चिड़िया” वाले अखंड भारत के ।।

 

 

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