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मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


 

निगाहें मिलाना, मिलाकर झुकाना

मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है

अकेले बिना बात के मुस्कुराना

मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है

 

बेचैन हैं दिन, हैं बेताब रातें

करने को बाकी हैं कितनी ही बातें

मगर उसके आते ही सब भूल जाना

मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है

 

निगाहें मिलाना, मिलाकर झुकाना

मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है

 

मासूम फूलों की खुशबू में तू है

कोई भी हो लगता है पहलू में तू है

हर चेहरे में चेहरा तेरा उभर आना

मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है

 

निगाहें मिलाना, मिलाकर झुकाना

मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है

 

मैं चाँद हूँ, तुम मेरी चाँदनी हो

मेरी सूनी रातों की तुम रोशनी हो

तुम्हें पाने के रोज़ सपने सजाना

मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है

 

निगाहें मिलाना, मिलाकर झुकाना

मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है

 

मेरी सारी गज़लें मुकम्मल हैं तुमसे

शेर-ओ-सुखन की ये महफिल है तुमसे

तुम पर ही लिखना, तुम्हीं को सुनाना

मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है

 

निगाहें मिलाना, मिलाकर झुकाना

मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है

 

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