.

एक संघर्ष | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीरज यादव, चम्पारण, बिहार


 

 

 

अपने जीवन की कठिनाइयों से,

हर पल मैं लड़ता हूँ।

जीत-पराजय का सामना करता,

मानो एक-एक पल मैं जीता और मरता हूँ।

 

आस-पास के लोग भी ऐसे,

जो ख़ुद जीने के बजाए, दूसरों को जीने नहीं देते।

खाना तो दूर की बात है,

ये तो चैन से दो घुट पानी भी पिने नहीं देते।

 

किन-किन से लड़े हम,

ये अब समझ नहीं आता है।

लड़ते-लड़ते तो कमज़ोर हो गए हम,

अब और हमसे लड़ा नहीं जाता है।

 

परंतु लड़ना तो सबसे है,

जो काटें बनकर हमारें राहों में अँटके हुए है।

अपनी ख़ुद की राह भुलाकर,

हमारी राहों में भटके हुए है।

मरे न कन्या गर्भ में | ऑनलाइन बुलेटिन
READ

Related Articles

Back to top button