गर जलाना ही है तो | ऑनलाइन बुलेटिन
©गायकवाड विलास
परिचय- लातूर, महाराष्ट्र
विविधताएं और परंपराओं से भरी हमारी ये भूमि,
सारे जहां में एक नई अलगता की पहचान है।
सभी त्योहार होते है यहां निरनिराले फिर भी,
वही एकता,अखंडता और संस्कृति हमारी सबसे बड़ी शान है।
कल और आज की एकता दिखती है कुछ बदली-बदली सी,
उसी की वजह से आज हर तरफ छाया हुआ अंधकार है।
हम सभी यहां मिल जुलकर त्योहार तो मनाते है लेकिन,
उसी देशभक्ति का जल्लोष सभी दिलों में कुछ पल का मेहमान है।
दशहरे के त्योहार में रावण को जलाकर हम मनाते है खुशियां यहां पर,
ऐसे ही सदियों से चला आ रहा है हमारा ये सफर।
हर साल उसी रावण को हम यहां जलाते है मगर,
सुख शांति और सुकून की जिंदगी कहीं पर भी यहां दिखती नहीं है।
आज के इस कलयुग में कौन रावण और कौन है यहां राम ?
उसी की पहचान करना, आज इस ज़माने में सबसे बड़ा मुश्किल काम है।
हर कोई अपनी बुराईयां छुपाकर खुदको कहते है अच्छा,
अगर सभी अच्छे है तो, क्युं ये हमारा वतन दिन-ब-दिन जल रहा है।
उसी रावण को जलाने से पहले कभी झांको जरा खुद के अंदर,
क्या सचमुच तुम्हारे मन में नहीं है कोई बुराईयों का समंदर।
इसीलिए उसी रावण को जलाकर बदलेगा नहीं ये जहां,
क्योंकि आज इस ज़माने में हर चौराहे पर रावण बने इन्सान बेखौफ हंसते हुए दिखते है।
ये कैसी नीतियां लेकर आज हम यहां जी रहे है सभी,
बुराईयां तो हम में है और रावण को हम जला रहे है।
गर जलाना ही है तो पहले जलाओ अपने मन का अंधकार और अहंकार,
फिर देखो यहां पर हर जगह बहारों का मौसम सदा के लिए खिलने वाला है।
विविधताएं और परंपराओं से भरी हमारी ये भूमि,
सारे जहां में एक नई अलगता की पहचान है।
दशहरा, दिवाली, ईद हो या हो यहां रमजान,
हम सभी को मिलकर हमारे मन में बैठे रावण को ही जलाना है।
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